आशा का एक और दीप जलता देखा मैंने
कोरोना वायरस संक्रमण के दौर में मैं अकेला ही आर्थिक और मानसिक परेशानियों से नहीं जूझ रहा, बहुत लोग हैं, जो दिक्कतों का सामना कर रहे हैं। हम सभी को चुनौतियों का डटकर सामना करना है. इस आशा के साथ हम पूरी ताकत से लड़ेंगे कि एक दिन मुश्किलों पर विजय तय है। हमें आशा के दीप जलाने हैं और निराशा के अंधेरे को मिटा देना है। खुद और अपने आसपास सभी के जीवन में उजाला लाने का प्रयास करना है।
मैं यह बात इसलिए कर रहा हूं कि कोरोना के दौर में निराशा की बातें ज्यादा सुनने को मिलीं, पर रविवार को आशा का एक दीप जलता देखा मैंने। वो अपनी दुनिया में जीते हैं और खुश रहने के लिए वो सबकुछ करते हैं, जो उनको अच्छा लगता है। वो पौधों से प्यार करते हैं, पशुओं का ख्याल रखते हैं। उनको मिट्टी से प्यार है और खेत खलिहान में उनकी जान बसती है। वो हुनरमंद हैं और जीना जानते हैं, परिस्थितियां चाहें कुछ भी हों। मैं उनसे कुछ सीखने गया था और सच मानिये...मैं अपने जीवन में कुछ बदलाव तो लाऊंगा...।
डोईवाला से करीब छह-सात किमी. दूर है झबरावाला गांव में है 30 वर्षीय बाबू का घर। वैसे उनका नाम हरविंदर सिंह है। सभी उनको बाबू कहते हैं। किसान अमर सिंह जी के बड़े पुत्र बाबू,शारीरिक दिक्कतों की वजह से स्कूल नहीं जा सके। मां बलविंदर कौर जी ने बताया कि जन्म से ही बाबू के दोनों हाथ काम नहीं करते। सात साल तक की उम्र में चलना सीखा। इन दिक्कतों पर भी बाबू और पूरे परिवार ने कभी हार नहीं मानी। बाबू अपने किसी काम के लिए दूसरों पर ज्यादा निर्भर नहीं करते। मैं तो कहता हूं कि अगर आप कुछ निराशा, हताशा को महसूस करते हैं तो बाबू के जज्बे को सलाम कर लीजिए।
वरिष्ठ पत्रकार संजय शर्मा के साथ हमें बाबू के घर पहुंचे। उनके भाई गुरदीप सिंह ने आवाज लगाई कि बाबू तुमसे मिलने कोई आए हैं। उनको दिखाओ कि तुम क्या क्या काम करते हो। बाबू मुस्कराते हुए कमरे से बाहर निकले। वो बहुत खुश दिख रहे हैं। उनके चेहरे पर दिखा कि वो अपने से मिलने वालों का बड़े उत्साह और खुशी से स्वागत करते हैं।
गुरदीप ने कहा, बाबू ये जानना चाहते हैं कि आप चूल्हे कैसे बनाते हो। वो तुरंत दौड़ते हुए कमरे में गए और वहां से पांव में फंसाकर एक कनस्तर लेकर आ गए। कनस्तर के एक हिस्से को उन्होंने पहले से काटा हुआ था। हमने पूछा, यह किसने काटा, उन्होंने हां में सिर हिलाया। हमने पूछा, कैसे बनाया, क्या इसको काटकर दिखा सकते हो। किसी भी सवाल पर तुरंत प्रतिक्रिया देने वाले बाबू सीधे अपने कमरे में गए और छोटी सी हथौड़ी और छेनी ले आए।
उन्होंने कुर्सी पर बैठकर कनस्तर को काटना शुरू कर दिया। हमने देखा कि एक पैर से छेनी पकड़कर उस पर हथौड़ी चलाने में उनको दिक्कत तो होती है, पर अपने काम में इतना मशगूल हो जाते हैं कि आसपास से उनका ध्यान हट जाता है।
गुरदीप बताते हैं कि बाबू किसी भी काम को अधूरा नहीं छोड़ते। कनस्तर को काटने के बाद उस पर मिट्टी का लेप लगाते हैं। इस तरह मिट्टी का चूल्हा तैयार। गांव में कुछ लोगों ने उनसे चूल्हे खरीदे हैं। पंजाब और हिमाचल से आए रिश्तेदार या गांव आए कुछ लोगों ने बाबू से चूल्हे बनवाए हैं। पर, आज उनके पास कोई बना हुआ चूल्हा नहीं था।
बाबू ने अपने घर के पास खेत की ओर इशारा किया। उनकी मां बलविंदर कौर जी ने बताया कि बाबू ने भिंडी, मिर्च और धान की पौध लगाई है, वो चाहता है कि आप उधर भी देखो। हमने कहा, बाबू भाई चलो... आपके खेत में चलते हैं। बाबू ने तुरंत पैर में खुरपी फंसाई और आगे आगे वो और पीछे पीछे हम खेत में पहुंच गए। बाबू ने पैर में फंसी खुरपी से क्यारी की निराई करनी शुरू कर दी। निराई करने की उनकी स्पीड देखकर हम चौंक गए।
उनसे पूछा, क्या यह सब आपने किया है। उन्होंने हां में सिर हिलाकर पुष्टि की। उनकी तारीफ में तालियां बजाने का मन किया और हमने ऐसा किया भी। वाह, बाबू भाई आप तो कमाल का काम करते हो।
खेत के पास ही चकोतरे का पेड़ दिखाया, जो बाबू ने कुछ साल पहले लगाया था। उस पर बहुत सारे फल लगे थे। बाबू अपनी तारीफ सुनकर बहुत खुश होते और चाहते कि हम उनके सारे काम देखें। गुरदीप ने पास ही धान की पौध दिखाते हुए कहा कि यह बाबू ने तैयार की है।
हमने पूछा, बाबू भाई यह क्या है। उन्होंने कहा, पौध। गुरदीप ने बताया कि बाबू भाई का खेती में बहुत योगदान है। खेत में खरपतवार दिखी नहीं कि तुरंत हटा देते हैं। जंगल के किनारे वाले अपने खेतों में बाबू भाई के होते, बंदरों का घुसना मना है। इतनी फुर्ती से खेत में दौड़ लगाते हैं कि बंदर वहां घुस नहीं सकते।
बाबू हमें अपने घर के गेट पर ले गए और गेट पर लगी घास और फुलवारी की ओर इशारा किया। गुरदीप ने बताया कि यह बाबू भाई ने लगाई है। इनको पौध लगाने का बड़ा शौक है। पौधे लगाकर उनको टाइम टाइम पर पानी देना। समय पर निराई करना, पौधों की देखभाल करने पर पूरा ध्यान देते हैं।
बाबू से जानना चाहा कि सुबह कितने बजे उठते हो, वो बोले, पांच बजे। फिर क्या करते हो। गुरदीप ने बताया कि बाबू सुबह जल्दी उठकर श्री गुरु नानक देव जी के भजन सुनते हैं। उनको भजन बहुत पसंद है। फिर अपनी सब्जियों की क्यारियों व फुलवारी में व्यस्त हो जाते हैं।
हमें पता चला था कि बाबू निशाना लगाने में माहिर हैं, वो भी पैरों से। हमें विश्वास नहीं हुआ। बाबू से कहा कि क्या वो सामने खड़े खंभे पर निशाना लगा सकते हैं। बाबू ने देर नहीं की और तुरंत पैरों की अंगुलियों में छोटा सा पत्थर फंसाकर हवा में उछाल दिया। पत्थर सीधा खंभे पर लग गया। बाबू खुशी खुशी अपनी प्रतिभा दिखा रहे थे।
उन्होंने हमें गायों को पानी पिलाकर दिखाया। वाशिंग मशीन चलाकर दिखाई। मां बलविंदर कौर जी ने बताया कि बाबू अपने कपड़े खुद धो लेते हैं। भाई गुरदीप बताते हैं कि बाबू को नहाने का शौक है। कम से कम एक घंटे लगता है उनको नहाने में। काफी सफाई पसंद हैं। पैरों की सफाई पर विशेष ध्यान रखते हैं। यह सब काम स्वयं करते हैं।
बाबू हमें छत पर ले गए और वहां मनीप्लांट का पौधा दिखाया। पैरों से टायर चलाकर दिखाया। बातों ही बातों में हमें पता चला कि बाबू चाय के शौकीन हैं। परिवार वाले बताते हैं कि जब मन करता है तो रसोई में जाकर खुद ही चाय बनाने की कोशिश करते हैं। जब मन किया तो घर में नहीं तो पड़ोस में रहने वाले चाचा रणजोध सिंह के घर जाकर चाय की फरमाइश कर डालते हैं। सभी बाबू से स्नेह करते हैं, क्योंकि बाबू भी सबसे बड़े उत्साह से मिलते हैं।
हमने बाबू से पूछा कि क्या चाय पीनी है। उन्होंने तेजी से हंसते हुए हामी भर दी। मां बलविंदर कौर जी ने बाबू को चाय पिलाई। मां ने बताया कि खाने पीने में तो हमें ही मदद करनी पड़ती है। बाबू को तरल पदार्थ पीने में काफी मुश्किल होती है। खाना आसानी से खा लेते हैं। बाबू हमेशा खुश रहते हैं।
बाबू फिल्म और म्यूजिक बहुत पसंद करते हैं। मोबाइल पर गाने सुनना और गानों पर डांस करना इनको काफी अच्छा लगता है। शारीरिक चुनौतियों से लड़ने वाले बाबू हमेशा मस्त रहते हैं। वो कभी खाली नहीं बैठते... वो सब्जियां उगाते हैं, पौधे लगाते हैं, खेती में मदद करते हैं, पशुओं का ख्याल रखते हैं। चूल्हे बनाते हैं और बच्चों के साथ खेलते हैं....इन सबसे बड़ी बात यह है कि वो कभी निराश नहीं होते। हमेशा खुश रहने वाले उत्साही बाबू से मुलाकात ने हमें एक कदम ही सही आशा की ओर ले जाने का बड़़ा काम किया है।
तकधिनाधिन की ओर से इस प्रेरणास्पद कहानी की कवरेज में Manava Bharati India International School के क्लास 10 के छात्र सार्थक पांडेय ने फोटो और वीडियोग्राफी में सहयोग किया।
तक धिनाधिन के अगले पड़ाव पर फिर मिलते हैं....तब तक के लिए बहुत सारी शुभकामनाएं।
Comments
Post a Comment