बीमार बना रही ये लाइफ स्टाइल
थिंक फॉर टुमारो
फ्यूचर में फाइनेंसियल सिक्योरिटी को बरकरार रखने और आज को संवारने की भागदौड़ ने शरीर को बीमारियों का घर बना दिया
जिंदगी की रफ्तार ने बीमार कर दिया। संक्रमित रोगों की तरह बीमारियों की एक और क्लास पनपने लगी है, जिसे आज की जीवन शैली से जुड़े रोगों का समूह कहें तो ज्यादा ठीक रहेगा। बढ़ती महंगाई, आपे से बाहर होता घर का बजट औऱ नौकरी में अनिश्चितता का दौर, क्या किसी भी व्यक्ति को राहत का अहसास भर करने देगी। हर कोई दौड़ रहा है, कोई और ज्यादा कमाने के लिए तो कोई दो जून रोटी का जुगाड़ करने भर के लिए। हर आहट युवाओं को बेचैन कर रही है। जीवन शैली और सेहत का सहसंबंध है और साफ है कि तनाव और घुटनभरी जिंदगी में स्वस्थ होने की उम्मीद नहीं की जा सकती।
मैं यह बातें उन लोगों के लिए कतई नहीं कर रहा हूं, जो तनाव से दूर रहने के तमाम तरीके जानते हैं औऱ पैसे की उनको कोई कमी नहीं है। मैं उन लोगों की भी बात नहीं कर रहा हूं, जो विरासत में इतना सब कुछ पा चुके हैं, जिन्हें अब कुछ करने की जरूरत नहीं है। अब वो कुछ कर रहे हैं तो अपनी संपदा को और आगे बढ़ाने के लिए करेंगे। मैं उन लोगों की बात कर रहा हूं, जिनको यह मालूम है कि अगर आज कुछ नहीं कर पाए तो कल का कुछ नहीं कहा जा सकता। उनका पूरा ध्यान घर-परिवार के बजट को लाइन पर लाने की आंकड़ेबाजी को दुरुस्त करने में लगा रहता है औऱ रिजल्ट ठीक किसी निकाय के आमदनी अठन्नी और खर्चा रुपया जैसा होता है। फ्यूचर में फाइनेंसियल सिक्योरिटी को बरकरार रखने और आज को संवारने के लिए की जा रही इस भागदौड़ ने शरीर को बीमारियों का घर बना दिया। मैं अपने आसपास युवाओं को फाइनेंसियल सिक्योरिटी पर चर्चा करते देखता हूं और इस चर्चा का हिस्सा भी बनता हूं। अपने हालातों की भी जानकारी है मुझे।
मूल विषय पर आने के लिए आर्थिक हालातों पर गौर करना जरूरी था, क्योंकि इनका जीवन शैली और जीवन शैली का सेहत से गहरा वास्ता है। शरीर को आराम और व्यक्ति को उससे काम की दरकार है। संतुलन कायम नहीं होने की वजह से शरीर बीमारियों का अड्डा बन रहा है।
पोलियो, हैजा, मलेरिया, टीबी जैसे रोगों पर काबू पाने के तमाम उपाय सरकारी स्तर पर दिखाई दे रहे हैं। ये बीमारियां सावधानियों से दूर रह सकती है, लेकिन उन रोगों का क्या करें, जिनका उस जीवन शैली से सीधा संबंध है, जो आज और कल को संवारने के लिए हर युवा अपना रहा है। क्या जॉब छोड़ दे, क्या जीवन के सभी तनावों को भूल जाए, क्या दफ्तर आने और जाने का कोई वो रास्ता तलाश करे, जहां से कभी कोई धुआं उड़ाती गाड़ी न गुजर रही है और जाम जैसा झाम न हो।
मैं 39 साल के आयु के एक युवा (दिखने में 50 पार) को जानता हूं, जिनका घर अपने दफ्तर से 25 किलोमीटर दूर है और वह नौकरी के बाद बाइक से देर रात घर लौटते है, रोजाना 50 किलोमीटर का सफर बाइक पर गुजरता है और किसी दिन ज्यादा भी। घर से आफिस तक आने के लिए डेढ़ घंटा पहले घर से निकलना होता है औऱ रास्ते में सड़कों के तमाम गड्ढों और जाम से जूझते हुए दफ्तर पहुंचने से पहले ही निढाल हो जाते हैं। वहीं धुआं उगलती गाड़ियों से उनका सामना ठीक बीमारियों के अटैक करने वाले अंदाज की तरह होता है। वो घबराहट और सांस की तकलीफ महसूस कर रहे हैं।
मैं यह बातें उन लोगों के लिए कतई नहीं कर रहा हूं, जो तनाव से दूर रहने के तमाम तरीके जानते हैं औऱ पैसे की उनको कोई कमी नहीं है। मैं उन लोगों की भी बात नहीं कर रहा हूं, जो विरासत में इतना सब कुछ पा चुके हैं, जिन्हें अब कुछ करने की जरूरत नहीं है। अब वो कुछ कर रहे हैं तो अपनी संपदा को और आगे बढ़ाने के लिए करेंगे। मैं उन लोगों की बात कर रहा हूं, जिनको यह मालूम है कि अगर आज कुछ नहीं कर पाए तो कल का कुछ नहीं कहा जा सकता। उनका पूरा ध्यान घर-परिवार के बजट को लाइन पर लाने की आंकड़ेबाजी को दुरुस्त करने में लगा रहता है औऱ रिजल्ट ठीक किसी निकाय के आमदनी अठन्नी और खर्चा रुपया जैसा होता है। फ्यूचर में फाइनेंसियल सिक्योरिटी को बरकरार रखने और आज को संवारने के लिए की जा रही इस भागदौड़ ने शरीर को बीमारियों का घर बना दिया। मैं अपने आसपास युवाओं को फाइनेंसियल सिक्योरिटी पर चर्चा करते देखता हूं और इस चर्चा का हिस्सा भी बनता हूं। अपने हालातों की भी जानकारी है मुझे।
मूल विषय पर आने के लिए आर्थिक हालातों पर गौर करना जरूरी था, क्योंकि इनका जीवन शैली और जीवन शैली का सेहत से गहरा वास्ता है। शरीर को आराम और व्यक्ति को उससे काम की दरकार है। संतुलन कायम नहीं होने की वजह से शरीर बीमारियों का अड्डा बन रहा है।
पोलियो, हैजा, मलेरिया, टीबी जैसे रोगों पर काबू पाने के तमाम उपाय सरकारी स्तर पर दिखाई दे रहे हैं। ये बीमारियां सावधानियों से दूर रह सकती है, लेकिन उन रोगों का क्या करें, जिनका उस जीवन शैली से सीधा संबंध है, जो आज और कल को संवारने के लिए हर युवा अपना रहा है। क्या जॉब छोड़ दे, क्या जीवन के सभी तनावों को भूल जाए, क्या दफ्तर आने और जाने का कोई वो रास्ता तलाश करे, जहां से कभी कोई धुआं उड़ाती गाड़ी न गुजर रही है और जाम जैसा झाम न हो।
मैं 39 साल के आयु के एक युवा (दिखने में 50 पार) को जानता हूं, जिनका घर अपने दफ्तर से 25 किलोमीटर दूर है और वह नौकरी के बाद बाइक से देर रात घर लौटते है, रोजाना 50 किलोमीटर का सफर बाइक पर गुजरता है और किसी दिन ज्यादा भी। घर से आफिस तक आने के लिए डेढ़ घंटा पहले घर से निकलना होता है औऱ रास्ते में सड़कों के तमाम गड्ढों और जाम से जूझते हुए दफ्तर पहुंचने से पहले ही निढाल हो जाते हैं। वहीं धुआं उगलती गाड़ियों से उनका सामना ठीक बीमारियों के अटैक करने वाले अंदाज की तरह होता है। वो घबराहट और सांस की तकलीफ महसूस कर रहे हैं।
कई साल से रात की ड्यूटी बजाने वाले मेरे एक मित्र के खाने और पीने का टाइम गड़बड़ा गया। वो दिन में नींद की हालत में नजर आते हैं। हमेशा तनाव वाली अहम जिम्मेदारी संभालने वाले ये मित्र रोजाना कंप्यूटर पर लगभग नौ घंटे नजरें जमाए रहते हैं। सही पॉश्चर में कंप्यूटर के सामने नहीं बैठ पाने, समय पर भोजन नहीं होने की वजह से ये स्पॉंडोलायिटस, आंखों में ड्रायनेस, डायबिटीज , हाइपर टेंशन, बात-बार पर झुंझलाने, हाई ब्लड प्रेशर की बीमारियों का घर बन गए हैं। कहते हैं यह नौकरी करेंगे तो बीमारियां तो बोनस में मिलना लाजिमी है। परिवार प्रभावित हो रहा है। मेरे यह मित्र नौकरी के विकल्पों को तलाश रहे हैं। कहते हैं, अब नहीं होता।यहां बात रही थी, उन बीमारियों की, जो मजबूरी की लाइफ स्टाइल में घेरती हैं।
इनके साथ ही खानपान में परहेज नहीं बरतने, तला भुना खाना ज्यादा पसंद करना, डेली एक्सरसाइज के लिए समय नहीं निकालना, शऱाब पीना, तंबाकू चबाना, सिगरेट, बीड़ी सहित तमाम आदतें भी रोगों को बढ़ा रहे हैं।एक रिपोर्ट के अनुसार विकसित देशों में हृदय, कैंसर,डायबिटीज के रोगी तेजी से बढ़ रहे हैं। 30 से 70 साल तक के लगभग 14.2 मिलियन लोग इन रोगों का शिकार हो रहे हैं। ये ठीक उसी तरह लोगों को अपना शिकार बना रहे हैं, जैसा प्रभाव तकनीकी और संसाधनों के विकास से पहले फैलने वाले संक्रामक रोगों से होता था। ये संक्रामक और आनुवांशिक रोगों से ज्यादा भयावह तस्वीर पेश कर रहे हैं। इनसे जूझ रहे व्यक्तियों के जीवन में जोखिम उस समय ज्यादा बढ़ जाता है जिनकी शारीरिक गतिविधियां कम हों, जो तंबाकू चबाने वाला, शराब पीने वाला हो, खानपान में संतुलन की ओर ध्यान न देने वाला हो। ये जीवन शैली के साथ आरामतलबी और लापरवाही के रोग भी हैं।
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