बेहतर इलाज न मिलने पर लोकगायिका ने छोड़ी दुनिया
आर्थिक संकट से जूझती रहीं बचनदेई, सरकार ने भी नहीं दिया साथ
राधाखंडी गायन शैली को बचाए हुए थीं लोकगायिका और नृत्यांगना बचनदेई
राधाखंडी गायन शैली की लोक गायिका और नृत्यांगना बचन देई को मेरी भावभीनी श्रद्धांजलि। अपनी आवाज से राधाकृष्ण के संवाद पर आधारित नाट्य मंचन में जान फुंकने वाली बचन देई ने 4 नवंबर, 2013 की सुबह इस दुनिया को अलविदा कह दिया। इसके साथ ही गायन की एक शानदार शैली अपने अवसानकाल में आ गई।
बचनदेई अंतिम समय में आर्थिक संकट के दौर से गुजरीं। फेफड़ों में संक्रमण से पीड़ित होने के कारण उनको सांस लेने में दिक्कत हो रही थी। उनको हायर सेंटर ले जाने की सलाह दी गई थी। दून अस्पताल से उनको कहीं ओर न ले जाने की वजह पैसा नहीं होना बताया जा रहा है। प्रदेश सरकार से इलाज के लिए मात्र 25 हजार रुपये मिले थे, जो उनका जीवन बचाने के लिए नाकाफी थे। आखिरकार बीमारी से लगातार संघर्ष करते हुए उन्होंने देह त्याग दी।
बचनदेई का योगदान और उपलब्धियां
बचनदेई के साथ उनके पति शिवचरण ने राधाखंडी गायन शैली को देशभर में कई मंचों पर पेश कर किया। बचनदेई को 2006 में विरासत सम्मान मिल चुका है। गढ़वाल केंद्रीय विश्वविद्यालय में विजिटिंग प्रोफेसर के रूप सेवाएं दीं। बीबीसी की गंगा पर बनाई फिल्म में बचनदेई ने अपनी आवाज दी। उत्तराखंड के संस्कृति विभाग ने राधाखंडी गायन शैली के प्रसार के लिए उनको गुरु शिष्य परंपरा के तहत गुरु बनाया। बेडा गायन में भी महारत रखने वालीं बचनदेई ने चैती, लांग, ब्रत, शिव,गंगा और बदऱीनाथ के गीतों को कई मंचों पर प्रस्तुत किया।
राधाखंडी गायन शैली टिहरी जिले के भिलंगना औऱ पौड़ी में विशे रूप से गाई जाने वाली एक प्रमुख गायन शैली है। नाट्य मंचन के दौरान राधा और कृष्ण के बीच संवाद का माध्यम बनी इस गायन शैली के 16 रूप हैं। इस शैली की राष्ट्रीय स्तर पर पहला पेशकश नेशनल स्कूल और ड्रामा में रंगकर्मी श्रीश डोभाल के निर्देशन में एक नाटक में की गई थी, जिसमें बचनदेई ने नृ्त्य के साथ गायन भी किया था। (साभार- विमल पुर्वाल)
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