जून 2014 में हरिद्वार रेलवे स्टेशन पर सो रही एक मां के पास से
उसका बच्चा उठा लिया गया। यह परिवार बच्चे के मुंडन संस्कार के बाद घर वापस जाने के
लिए रेलवे स्टेशन पर ट्रेन का इंतजार कर रहा था। एक माह के भीतर ही एक और बच्चा उठा
लिया गया, यह बच्चा भी मां के पास सो रहा था। यह परिवार भी बच्चे का मुंडन कराने
आया था। हरिद्वार में पहले भी ऐसी घटनाएं हो चुकी हैं। 2013 में एक नवजात को
हरिद्वार के महिला अस्पताल से चोरी कर लिया गया था। हालांकि घटना के कुछ घंटे बाद
ही एक महिला से यह बच्चा मिल गया। यह महिला बच्चे को चोरी करके सीधे रेलवे स्टेशन
पहुंची थी और फिर ट्रेन से फरार होने वाली थी। इससे पहले भी मुंबई से चोरी एक
बच्ची हरिद्वार में मिल चुकी है। इन घटनाओं से साफ है कि मां के आंचल से बच्चों को
अलग करने वाला एक गिरोह हरिद्वार में सक्रिय है। एक और
बात यह कि हरिद्वार में बच्चों को लावारिस छोड़ने की घटनाएं भी काफी हुई हैं। ये
घटनाएं हरिद्वार के सार्वजनिक स्थानों पर सुरक्षा के नाकाफी
इंतजामों का नतीजा है। साथ ही सार्वजनिक स्थानों पर सावधान रहने की ओर भी इशारा
करती है।
इन घटनाओं से कई सवाल उठते हैं, क्या हरिद्वार बच्चे
चोरी करने वाले किसी गिरोह के निशाने पर है।
कहीं बच्चे उठाने वाले गिरोह के शहर में ही तो
अड्डे नहीं हैं। यह सवाल उन हालातों पर उठता है जब घटनाओं के कुछ देर बाद ही
चेकपोस्टों, रेलवे स्टेशन और बस स्टैंड पर चेकिंग शुरू होने पर भी कोई सफलता नहीं
मिलती। सघन चेकिंग का दावा तो पुलिस ही कर रही है।
अगर रात की गश्त में जीआरपी, आरपीएफ सतर्क रहती है
तो रेलवे स्टेशन पर सो रहे मुसाफिरों के बीच में से बच्चा कैसे उठा लिया गया।
क्या यात्रियों के इस
शहर के सार्वजनिक स्थलों पर सुरक्षा के इंतजाम नाकाफी हैं। क्या यहां निगरानी के
लिए और सुरक्षा कर्मियों की जरूरत है।
यहां पर्वों पर अचानक भिक्षा मांगने वालों की बाढ़
कहां से आ जाती है। फिर अचानक इनमें से काफी कहां चले जाते हैं। क्या इनका ब्योरा
पुलिस के पास मिल जाएगा।
क्या इनके सत्यापन की कोई व्यवस्था हरिद्वार पुलिस
ने की है।
क्या हरिद्वार पुलिस के पास ऐसा कोई रिकार्ड मैन्टेन है, जिसमें संदिग्ध नजर आने वाले लोगों से पूछताछ का ब्योरा नियमित रूप से
दर्ज होता है।
पहले हुई कुछ घटनाओं में यह बात सामने आई है कि
होटलों और धर्मशालाओं में बिना आईडी के लोग ठहराए जाते हैं। अगर इसकी जांच नियमित
तौर पर होती है तो नतीजे भी सामने आए होंगे। या सभी होटलों, धर्मशालाओं में नियमों
का पालन हो रहा है।
महत्वपूर्ण सवाल
यहां लावारिस घूमते बच्चों के मां बाप कौन हैं और ये
कहां से आए हैं। इसकी पड़ताल करना क्यों जरूरी नहीं समझा जा रहा।
पहले चलाए गए अभियान का कोई नतीजा होता तो आज भी
हरिद्वार में इतने ज्यादा बच्चे लावारिसों की तरह घूमते नजर नहीं आते।
क्या यह पड़ताल की गई कि ये बच्चे कहीं से गुमशुदा
हैं या अपनी मर्जी से भागकर हरिद्वार पहुंचे हैं।
कहीं इनसे कोई गिरोह तो भिक्षा मंगवाने का काम नहीं
करा रहा।
मैं यह कतई नहीं कह रहा कि पुलिस अपना काम सही तरीके
से नहीं कर रही। हो सकता है कि पुलिस के प्रयास इन सवालों के जवाब पहले ही दे चुके
हों, अगर ऐसा है तो नतीजे भी कुछ समय बाद मिल ही जाएंगे, ऐसी उम्मीद है। मांओं को
उनके बच्चे मिल जाएंगे और हरिद्वार की सड़कों पर कोई बच्चा लावारिसों की तरह नहीं
भटकेगा।
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