मुझे तुम पर शर्म आती है....

किसको दिखा रहे ये ड्रामा

सोमवार14 मार्च को देहरादून में जो हुआ वो बड़ा शर्मनाक था। मुंहजोरी से बात नहीं बनी तो तुमने सड़क पर ही लाठियां उठा लीं। जवाब दो, कानून को अपने हाथ में लेकर कानून से बड़ा होने की हिमाकत क्यों की। ऐेसा तुम किसको दिखाने के लिए कर रहे थे। अपने ही जैसे जादूगरों से जोर आजमाइश करने के लिए सड़कों को घेर लिया था तुमने। कानून के रक्षकों पर हाथ छोड़ने से भी बाज नहीं आए तुम। निरीह जानवरों पर भी तुमने लट्ठ बरसा दिए। उसने तो तुम्हारा कुछ नहीं बिगाड़ा था।
हाईवे जाम करके जनता को यह ड्रामा क्यों दिखाया तुमने। क्या सदन में तुम्हारी बात कोई नहीं सुन रहा था या तुम्हें अपनी बात रखने का कोई तार्किक तरीका ही समझ में नहीं आ रहा था। आता भी क्यों, तुम्हारी सोच ही सड़कों को घेरने जैसी सड़क छाप जो हो गई है। यह बीमारी तुम्हें ही नहीं सत्ता में बैठे लोगों को भी है। जब तुम सत्ता में रहकर मौज मस्ती कर रहे थे, तब वो सड़कों पर हंगामा बरपकर पूरे उत्तराखंड को परेशान करने में मशगूल थे। कल तक वो तुम्हें घोटालेबाज कर रहे थे आज तुम उनको। तुम्हारे बीच यह वो नाटक है, जिसका कोई अंत मेरी समझ में नहीं आता।

मैं कैसे बचूं तुम्हारे मकड़जाल से

अपनी बात सदन में रखो, जहां तुम्हें मैंने भेजा था। मेरे मु्द्दों को उन तरीकों से उठाते जिन पर मैं गर्व महसूस करता। मैं खुद को भाग्यशाली समझता कि मैंने तुम्हें चुनने में कोई गलती नहीं की। पर अब मुझे तुम्हारे इस कृत्य.को देखकर शर्म आती है। सोचता हूं कि तुम्हें दोष दूं या खुद को। तुम्हारे मकड़जाल से बचने के लिए मैं किन तरीकों से सावधान हो जाऊं। तुमसे मेरा कोई लगाव नहीं है, तुम मेरे लिए सिर्फ सड़क से सदन तक चलने वाली उस नौटंकी के पात्र जो हमेशा मेरा उपहास उडाती रहती है।

मत तोड़ो मेरा विश्वास

मुझे दिखाने के लिए यह हंगामा क्यों करते हो भाई। मुझे तुम्हारा लगना झगड़ना पसंद नहीं है। मैं जानता हूं कि आप सब बड़े बहादुर और झूठे वादों में फंसाकर सम्मोहित करने वाले जादूगर हो, तभी तो इस दौर के चुनावी रण में जीतकर माननीय होने का तमगा हासिल करते हो।
मैं समझ गया कि तुमने झूठ बोलकर एक बार फिर मेरे विश्वास को तोड़ा है। अब तुम मेरे पास फिर आओगे और झूठ बोलोगे और मैं इस बार भी तुम्हारे भंवरजाल में फंस जाऊंगा और अपनी इस गलती की सजा पांच साल तक भोगूंगा। मैं आम आदमी हूं और तुम खास। यह मत भूलना कि मैंने तुम्हें खास बनाया है। मैं तुमसे जो चाहता हूं वैसा तुम नहीं करते।


बड़ी तकलीफ हो रही है तुमसे

अगर मैंने तुम्हें यहां पहुंचाने में कोई गलती नहीं की है तो मेरा ज्यादा नहीं तो थोड़ा सा ही भला कर दो। भाई मुद्दों की बात करो, ताकि मेरा कुछ भला हो जाए। मैं पहाड़ से लेकर मैदान तक तकलीफों के दौर से गुजर रहा हूं। ये वो चुनौतियां हैं, जो वर्षों पहले भी थीं और आज भी हैं। बड़ा कष्ट हो रहा है चुनावी रणबांकुरों।


मेरे पैसे से बंद कर दो मौज मस्ती

कुछ भी न करो, लेकिन सरकार से मिलने वाला पूरा बजट ही मेरी तकलीफों को दूर करने में लगा दो। मेरे पैसे से मौज मस्ती मत करो और न किसी को करने दो।  वो योजनाएं मेरे तक पहुंचा दो, जो सरकार ने मेरे लिए बनाई हैं। मैं यह भी जानता हूं कि हम लोगों में जागरूकता नहीं है और मेरे जैसे काफी लोग अपने अधिकारों को नहीं जानते। हममें से तमाम लोगों को अपने भले की योजनाओं की जानकारी नहीं है। पर तुम्हारा भी तो कोई फर्ज है, क्योंकि तुमने जन से तंत्र के बीच सेतु बनने की शपथ ली है।




फोटो साभार- व्हाट्सएप ग्रुप

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