पापा बहुत याद आते हो आप



स्वर्गीय श्रीश्रीकृष्ण पांडेय  
22 मार्च 2015 की रात ने आपको हम लोगों से हमेशा के लिए दूर कर दिया, लेकिन आज भी आप हमारे दिलों में बसते हो। कोई दिन ऐसा नहीं बीतता जिस दिन हम आपको याद नहीं करते। मैंने कहीं पढ़ा है कि जो लोग रोजाना याद किए जाते हों वो कभी नहीं मरते। हम अपनी आखिरी सांस तक आपकी यादों को अपने दिल में सहजकर रखेंगे, क्योंकि आपने हमें जीवन दिया है और जीने का तरीका जो सिखाया है। अपनी खुशियों को किनारे करके हमारे लिए अपना दिनरात एक जो कर दिया था आपने। हमको कोई कष्ट नहीं पहुंचे, इसके लिए आपने रात जागकर बिताई।

मुझे आज भी याद है, जब मैं दिनभर खेलकूद कर पैरों में दर्द की शिकायत करता तो आप मेरे पैर दबाते और तब तक यह क्रम जारी रहता, जब तक कि मैं सुकून की नींद नहीं सो जाता। पिता के अहसान कोई नहीं चुका सकता, मैं नहीं और मेरी आने वाली पीढ़ी भी नहीं। अगर आज मैं यह कहूं कि मेरे पर कोई कर्ज नहीं है, तो मैं यह झूठ बोलता हूं। मेरे पर अपने माता पिता का वो कर्ज है, जिसको अगर मैं दुनिया का सबसे अमीर शख्स भी हो जाऊँ तब भी नहीं चुका सकता , क्योंकि इसकी कोई कीमत नहीं लगा सकता और यह अमूल्य है। मैं खुद को व्यस्त बताकर लाख बहाने बना लूं, लेकिन आपने मेरे लिए कभी बहाना नहीं बनाया। मेरी पढ़ाई से लेकर परवरिश का हर जरूरी सामान आपने मुझे दिलाया।

मुझे वो दिन भी याद हैं जब आप हफ्ते या दो हफ्ते में चकराता से घर आते थे और मैं हर शनिवार घर की पिछली खिड़की में बैठकर आपके आने के रास्ते को ताकता रहता था। जब आप मुझे नहीं दिखते थे तो निराशा होती थी और मां से पता चलता कि आप अगले हफ्ते आओगे तो आने वाले दिन आपके इंतजार में गुजरते थे। मैं आपसे बहुत प्यार करता था और आपके जाने के बाद आपको बहुत याद करता हूं। मुझे डर है कि वक्त के साथ आपको भुला न दूं । इसलिए रोजाना बिना नागा, जब भी थोड़ा समय मिलता है तो आपको याद करता हूं और आपका चेहरा मेरे सामने होता है, क्योंकि आप भी मुझे बड़ा प्यार करते थे।

16 मार्च, 2015 को आपको हिमालयन अस्पताल चेकअप के लिए ले गया था। मैं यह जान रहा था कि आप ठीक हो, क्योंकि उस दिन आप मुझे बहुत अच्छे लग रहे थे। मैंने मन ही मन सोचकर शायद आपसे कहा भी था कि आप बहुत स्मार्ट लग रहे हो। पता नहीं क्यों आपके चेहरे पर कुछ अलग ही चमक मुझे नजर आ रही थी। डॉक्टर ने बीपी चेक किया और एक दवाई कम कर दी। मैंने हार्ट के डॉक्टर से यह भी कहा, कि पापा खांसी जुकाम पर भी आपके पास आते हैं। मेरे साथ डॉक्टर भी मर्ज को समझ नहीं सका। पापा के चेहरे पर हल्की सूजन को भी नार्मल पाते हुए बदलकर एक महीने की दवा लिख दी। आपने खुद दवा खरीदी और समझी।

घर आते हुए मैं सोच रहा था कि अब पापा को एक महीने बाद लेकर अस्पताल आऊंगा और तब तक के लिए इनको भी आराम मिलेगा। रास्ते में बातें करते हुए आ रहे थे कि आपने अचानक एक सवाल कर दिया, जिसको मैंने उस समय मजाक में लिया था और आज पछताता हूं कि आपके सवाल को मैंने मजाक में क्यों लिया और उसको बड़े मैसेज के तौर पर लेकर आपको कहीं और किसी बड़़े डॉक्टर के पास क्यों नहीं ले गया। उन एक हफ्ते मैं आपके पास क्यों नहीं रहा।। 

आपसे बातें क्यों नहीं की और आपकी तकलीफ को क्यों नहीं समझ पाया। आपने मुझसे पूछा था कि क्या यह पूरी दवा खानी पड़ेगी। मैंने भी हंसी के मूड़ में आपसे कह दिया था कि दवा खाने के लिए लाए हैं, न कि देखने के लिए पापा। घर आकर आपके सवाल का जिक्र किया था तो सबने हल्के में लिया, लेकिन कोई इसमें छिपे दुखद मैसेज को नहीं पढ़ पाया। आपका सवाल वाजिब था क्योंकि आपने दवा एक हफ्ते भी नहीं खाई और आप हमें छोड़कर चले गए।

22 मार्च रविवार की सुबह आपने मुझे बुलाया। मैं नहीं पहुंचा और बिस्तर पर जाकर लेट गया। आपने भतीजी को भेजकर मुझे बुलाया। अच्छा हुआ कि मैं आपके पास तुरंत पहुंच गया। आपने मुझसे कहा था कि टॉयलेट में पानी नहीं आ रहा है उसको ठीक करा दो। आपके चेहरे पर सूजन थी, जो अक्सर सुबह के वक्त रहती है, जानकर मैं कुछ समझ नहीं पाया और आपसे यह कहकर वापस अपने कमरे में आ गया कि पापा आप टॉयलेट में जाकर आ जाया करो, पानी मैं डाल दिया करुंगा। इसको जल्द ठीक करा देंगे। अच्छा हुआ मैंने पापा आपकी बात सुन ली थी, नहीं तो आज में बहुत पछताता कि पता नहीं आप क्या कहना चाह रहे थे। आपके साथ यह मेरा अंतिम वार्तालाप था।

रविवार दोपहर आपकी तबीयत खराब हुई और परिवार के लोगों ने हाथ पैर मालिश किए। आपको डॉक्टर के पास ले जाने के लिए मैं दफ्तर जाने से रुका रहा। कुछ देर में आप खुद को रिलेक्स महसूस करने लगे। तय हुआ कि आपको सोमवार को अस्पताल में दिखाया जाएगा। मां से भी आपने मंडे को दिखाने की बात कही। मैं भी आपको राहत समझकर दफ्तर चला गया। जब आपने रात एक बजकर 20 मिनट पर अंतिम सांस ली तब मैं दफ्तर में ड्यूटी खत्म करके लौटने की तैयारी में था।

मैंने दफ्तर में सोमवार को पापा का चेकअप कराने की बात कहकर छुट्टी मांगी थी। आपकी मृत्यु की सूचना घरवालों ने मुझे नहीं दी थी, क्योंकि वो जानते हैं कि मैं अचानक इस दुखद सूचना से बुरी तरह टूट जाऊंगा और रात को देहरादून से डोईवाला के 25 किलोमीटर के सफर को तय नहीं कर सकूंगा। मैं रास्तेभर यह सोचता हुआ आ रहा था आपको कल अस्पताल ले जाऊंगा और रास्ते में एटीएम से पैसे निकालने की कोशिश की,लेकिन पैसा नहीं मिला। एटीएम खराब चल रहा था। घर की गली शुरू होने से पहले तक मैं नहीं जानता था कि आप हमें छोड़कर जा चुके हैं। आप अब कभी अस्पताल नहीं जाएंगे और हमें अपनी सेवा का कोई मौका नहीं देंगे। अब मेरे पास यह सोचकर पछताने के सिवाय कोई विकल्प नहीं रहा  कि काश मैं आपको रविवार को ही अस्पताल ले जाता। आपका कहीं और चेकअप कराता।

नियमित तौर पर चेकअप कराने , डॉक्टर के पास जाने और दवाइयों का पूरा ख्याल रखने वाले आप कहते थे कि मेरे को कुछ नहीं हुआ। थोड़ा अस्वस्थ हूं। इस उम्र में यह तो सब लगा रहता है। मैं तो 100 साल तक रहूंगा। हम भी आपको अस्वस्थ नहीं पाते हुए उम्मीद कर बैठे थे कि आप 71 के हो और अभी हमारे बीच से कहीं नही जाओगे। मैं कभी आपको डॉक्टर के पास ले जाने में लापरवाही बरतता तो आप बहन  या  भतीजी के साथ अस्पताल जाकर चेकअप करा आते थे।

आपकी एक बात मुझे हमेशा याद रहेगी , आप कहते थे कि जब भी दफ्तर में मेरे पास कोई जरूरतमंद व्यक्ति आता था तो मैं उसकी हरसंभव मदद  करता था। सिवाय आपको याद करने के अब हमारे पास कुछ नहीं बचा। आपको हमारी यह सच्ची श्रद्धांजलि होगी कि उन लोगों की  कुछ मदद कर दी जाए जो जरूरतमंद हों। अपनी हैसियत से जो भी किसी के लिए बन पडे़गा, उसे जरूर करूंगा।

गलतियों और लापरवाही के  लिए बहुत सारी माफी चाहिए । मानता हूं कि माफी पाने के लिए लायक नही हूं लेकिन पूरी उम्मीद है कि आप मुझे माफ कर दोगे क्योंकि आप पिता हो।

शत शत सादर नमन

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