गैस सब्सिडी का सामाजिक अर्थशास्त्र

थिंक फॉर टुमारो

क्या गैस पर मिलने वाली सब्सिडी को खत्म कर देना चाहिए। मेरा मानना है कि इसको खत्म नहीं करना चाहिए औऱ न ही इसकी रकम उपभोक्ता के खाते में जमा की जाए। यह बात मेरी समझ से परे है कि एजेंसी पर पूरी रकम जमा कराने के बाद सरकार 200-200 रुपये वापस खाते में सब्सिडी कहकर क्यों जमा कर रही है। जब छूट देनी ही है तो सिलेंडर खरीदते समय.ही कम पैसे क्यों नहीं लिए जाते। हो सकता है कि ऐसा करने के पीछे कोई अर्थशास्त्र हो, जो मेरे जैसे लोगों की समझ में नहीं आ रहा है। क्योंकि मैं अर्थशास्त्र का छात्र नहीं रहा हूं।

एक और बात भी मेरे दिमाग में नहीं घुसती और मैं इस सवाल का जवाब भी नहीं तलाश पा रहा हूं कि पहले सब्सिडी का चस्का लगाने वाली सरकार को अब यह अपील करने की जरूरत क्यों पड़ गई कि आप सब्सिडी छोडे़गो तो किसी गरीब का चूल्हा जलेगा। पहले भी लोगों को छूट मिलती होगी, लेकिन पूरे पैसे लेकर वापस खाते में किसी ईनाम की तरह 200-200 जमा करना वाकई मेरे जैसे लोगों का दिमाग घुमा रहा है।

नजरिया आम आदमी का
अगर सब्सिडी खत्म भी न हो औऱ उपभोक्ता के खाते में भी न आए तो फिर इसका क्या होना चाहिए। इसका जो जवाब मेरी समझ में आता है, हो सकता है कि आप उससे वास्ता रखे या नहीं। लेकिन मैं इसको रोजगार, शिक्षा औऱ स्वास्थ्य के संसाधन विकसित करने के साथ ही सामाजिक तरक्की के नजरिये से देखता हूं। मैं पैसे के प्रबंधन के उच्चस्तरीय फार्मूलों को नहीं जानता, लेकिन एक आम आदमी की तरह अपनी आय और व्यय को मैनेज करना वक्त के साथ सीख गया हूं। मैं यह भी थोड़ा बहुत जान गया हूं कि सीमित आय में ही छोटे छोटे सपनों को साकार करने के लिए कैसे आगे बढ़ा जा सकता है।


सब्सिडी से होकर गुजरेगा तरक्की का रास्ता
विषय को और ज्यादा न घुमाते हुए सीधे मुद्दे पर आता हू्ं। पूरे देश, राज्य और जिले की बात करने से पहले ब्लाक या तहसील या फिर न्याय पंचायत की बात करते हैं। जिस क्षेत्र में मैं रह रहा हूं वहां लगभग दस हजार उपभोक्ता हर माह यानि दस हजार सिलेंडर एजेंसियों से भरवा रहे हैं। अगर करीब दो सौ रुपये एक सिलेंडर पर सब्सिडी है तो पूरे क्षेत्र की एक माह में कुल सब्सिडी 20 लाख रुपये बैठती है। यह एक अनुमान है, हो सकता है कि रकम इससे कहीं ज्यादा हो। सालभर का हिसाब लगाएं तो एक क्षेत्र के लिए कुल रकम लगभग ढाई करोड़ हो सकती है।


हर माह दो-दो सौ रुपये या एक मुश्त ढाई करोड़
सवाल उठता है कि हर व्यक्ति के खाते में हर महीने 200-200 रुपये जमा कराना ज्यादा अच्छा है या पूरे क्षेत्र में रोजगार, शिक्षा, स्वास्थ्य के संसाधनों के विकास के लिए बड़ा न सही छोटा लेकिन सार्थक कदम बढ़ाना सही है। कुछ लोग यह कहकर मेरी बात को नकार देंगे कि सरकार पहले से ही यह सब कुछ कर रही है, ऐसे में गैस की सब्सिडी का हक मारने की जरूरत क्यों पड़ गई। मैं लोगों के इस तर्क पर पलटवार नहीं करुंगा, लेकिन एक बात जरूर कहना चाहूंगा कि खाते में हर महीने आने वाली सब्सिडी को आप भले ही महसूस न कर पाते हो, लेकिन अपने क्षेत्र में आपको इस योगदान पर गर्व जरूर होगा। आप खुद को सामाजिक रूप से इतना सबल पाओगे कि हर ऐेसी पहल खुद से शुरू करना चाहेगे।




जारी........



















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