Traffic pressure & Pollution in Uttarakhand

उत्तराखंड में कम होता जा रहा जनता का परिवहन 
हर साल सात फीसदी की दर से कम हो रही सार्वजनिक परिवहन के लिए गाड़ियों की खरीदारी 
भले ही उत्तराखंड परिवहन विभाग की कमाई में साल दर साल बढोतरी हुई हो, लेकिन जनता के लिए परिवहन के साधनों में गिरावट का दौर जारी है। इसके साथ ही प्रदूषण बढ़ रहा है, लेकिन जनता के परिवहन की कीमत पर नहीं। देहरादून को हाल ही में एक रिपोर्ट में विश्व के सबसे प्रदूषित शहरों में 29 वें स्थान पर रखा गया है। परिवहन विभाग की वेबसाइट दिए आंकड़ों के अनुसार खुलासा हो रहा है कि राज्य में  टैक्सी, मैक्सी के रजिस्ट्रेशन में हर साल लगभग सात फीसदी की कमी आई है। वहीं राज्य में बाइकों और प्राइवेट कारों, जीपों की खरीदारी तेजी पर है,  जो रोजाना लगभग आठ करोड़ रुपये तक है। राज्य में पहाड़ से लेकर मैदानी इलाकों तक की परिवहन व्यवस्था निजी कंपनियों की बसों और टैक्सी, मैक्सी और रोडवेज के भरोसे है, लेकिन कई रूटों पर ये सेवाएं भी नहीं हैं। रात नौ बजे के बाद शहर और बाहर सार्वजनिक परिवहन सिस्टम गायब हो जाता है। हालांकि शहरों में आटो टैंपों की संख्या बढ़ रही है, लेकिन रात को यात्रा महंगी हो जाती है, जिस पर कोई अंकुश नहीं है। 
       उत्तराखंड में कुल गाड़ियों में 72 फीसदी बाइकें हैं, जिनमें 16 फीसदी प्राइवेट कार और जीप हैं। सार्वजनिक वाहनों बसें, टैक्सी, मैक्सी, आटो टैंपो की संख्या कुल वाहनों की तुलना में 3.34 फीसदी ही है। जनसंख्या के हिसाब से औसत देखा जाए तो राज्य में 32 व्यक्तियों पर एक प्राइवेट कार और जीप है। 
2011 की जनगणना के आंकड़ों से तुलना की जाए तो उत्तराखंड में 160 लोगों पर एक पब्लिक ट्रांसपोर्ट( बस, टैक्सी, मैक्सी, आटो टैंपो) है। शहर की आबादी देखी जाए तो  166 लोगों पर एक  आटो टैंपो है। दस साल में टू व्हीलरों औऱ प्राइवेट कारों जीपों की सालाना खरीददारी साढ़े चार गुना तक पहुंच गई। वहीं 2003-04 की तुलना में सरकार को 11 साल में ट्रांसपोर्ट से मिला  4.6 गुना राजस्व मिला। 2012-13 को छोड़ दिया जाए तो हर साल राजस्व में तेजी से बढोतरी हो रही है।

क्यों कम हो रहा राज्य में सार्वजनिक परिवहन- जानकारों के अनुसार हरियाणा, दिल्ली, पंजाब और वेस्ट यूपी से मसूरी, नैनीताल, कार्बेट, चकराता, रानीखेत और अन्य टूरिस्ट स्पॉट पर आने वाले अधिकतर पर्यटक अपनी गाड़ियों से आ रहे हैं।  दिल्ली, पंजाब और उत्तर प्रदेश की ट्रेवलिंग कंपनियों का दखल बढ़ा है। दिल्ली और अन्य राज्यों से ही बुकिंग पर गाड़ियां उपलब्ध होती हैं।होटलों के साथ गाड़ियों की आनलाइन बुकिंग भी बाहर की ट्रेवलिंग एंड टूरिज्म कंपनियां कर रही हैं।  उत्तराखंड के लिए लग्जरी बस औऱ रेल सेवाएं बढ़ी हैं।  राज्य में रजिस्टर्ड टैक्सी, मैक्सी और निजी बसों का अधिकतर काम लगभग छह माह यात्रा सीजन में ही चल पाता है।बाकी माह पहाड़ से स्थानीय सवारियों को सेवा देने में बीतता है।  स्थानीय अधिकतर लोग अपने ही वाहनों से यात्रा करते हैं।  चारधाम यात्रा के दौरान भी काफी संख्या में यात्री अपनी ही गाड़ियों से आ रहे हैं। 
प्राइवेट वाहन  बढ़ने का कारण-  राज्यभर में कई स्थानों पर रात आठ बजे के बाद सार्वजनिक परिवहन सेवा में कमी के कारण बाइकों की खरीदारी बढ़ी।  समय बचाने और सुविधा को देखते हुए लोग अपनी गाड़ियों से सफर करना ज्यादा पसंद करते हैं। परचेजिंग पावर बढ़ी है और ईएमआई की सुविधा ने गाड़ियों की खरीदारी को आसान किया है। रोजाना एक से दूसरे शहर में सफर करने के लिए बाइक सबसे ज्यादा सुविधायुक्त औऱ सस्ता साधन है।
क्या हैं दिक्कतें -  राज्य के पर्वतीय जिलों के लिंक रोड पर परिवहन सेवा में कमी। लंबी दूरी के लिए चलने वाली गाड़ियों में रास्ते के गांवों और कस्बों की सवारियां नहीं बैठ पाती।  गाड़ियां कम होने और सवारियों की संख्या ज्यादा होने पर ओवरलोडिंग की समस्या।  यात्रा सीजन में स्थानीय लोगों के लिए परिवहन सेवाओं में कमी। मैदानी इलाकों में भी रात आठ बजे के बाद कम दूरी के लिए परिवहन सेवाएं मुश्किल से मिलती है। 

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