मां के लिए दो शब्द

मैं 42 साल का हो गया हूं, लेकिन जब मां घर से बाहर कहीं जाती हैं, तो मैं उनको देखे बिना बेचैन सा हो जाता हूं। उनको देखकर ही मुझे वो शांति मिलती है, जिसको बयां करने के लिए मेरे पास शब्द ही नहीं हैं। मेरी किसी भी समस्या का हल है मेरी मां के पास। हर सुबह मां को देखने और उनकी आवाज सुनने से शुरू होती है। मैं यह आज तक नहीं समझ पाया कि मां में एेसी कौन सी शक्ति है जो मुझे और पूरे परिवार को एक सूत्र में बांधे रखती है। वह दिव्य हैं मेरे लिए उनके सामने धरती पर कोई भगवान नहीं हैं। मैं मंदिरों में नहीं जाता,क्योंकि मेरे पास मां है और वह जहां हैं मेरा मंदिर वहीं है। उन्होंने मुझे मंदिरों में जाना सिखाया है, लेकिन इसके साथ यह भी बताया कि अगर किसी का भला कर दोगे तो मंदिर और पूजा से गैरहाजिरी भी माफ होगी।  लोगों का भला करो, अच्छा करो तो ईश्वर की नजर तुम पर होगी, जिस व्यक्ति पर ईश्वर की नजर खुद है, उसे कहीं और जाने की जरूरत नहीं है। अगर तुम किसी असहाय की मदद करते हो तो यह समझो कि ईश्वर ने तुम्हें एेसा करने के लिए भेजा है। इसका मतलब साफ है कि ईश्वर तुम पर अपनी नजर रखते हैं। मेरी मां की यह बात मैं आज भी गांठ बांधकर रखता हूं। एेसा सिखाने वाली मां को कोई भुला सकता है भला।
     मैं अगर अस्वस्थ हो जाता हूं तो मां ने मेरी देखरेख में अस्पताल में जागकर रात काटी। वह एेसा इसलिए करती हैं, क्योंकि उनको मेरी चिंता है और वह मुझसे आज भी उतना ही प्यार करती हैं, जितना मुझे बचपन में करती थीं।मेरे सिर पर उनका स्नेहभरा हाथ वो सुकून देता है जो अनमोल है और सिवाय मां के स्नेह से ही मिल सकता है।
अगर लिखने लगा तो मां की महिमा लिखता ही रहूंगा। अब अपनी बात केवल इन शब्दाें से खत्म करूंगा- मां तुम नहीं तो मेरा जीवन नहीं और तुम्हारा स्नेह और त्याग का बदला मैं दुनिया का सबसे अमीर  शख्स भी बन जाऊं, तो भी नहीं चुका सकता।

सादर

Comments