देहरादून। लोकसभा चुनाव 2014 की तरह इस बार फिर उत्तराखंड में एनआरएचएम दवा घोटाले का जिन्न स्वास्थ्य विभाग में धूल फांक रही फाइलों से बाहर निकल आया है। 2014 में भी इसी सरकार ने दवा घोटाले की जांच सीबीआई से कराने की फौरी तौर पर संस्तुति की थी,लेकिन इस बार यह सिफारिश कैबिनेट के जरिये की गई है। गर्भवती महिलाओं, जच्चा- बच्चा की दवा के लिए केंद्र सरकार से मिले बजट को कौन पी गया, इसकी चिंता ठीक चुनावी सीजन में ही क्याें की जाती है। देर से ही भले लेकिन जच्चा बच्चा की दवा पीने वालों तक कानून के हाथ पहुंचने जरूरी हैं। अब देखते हैं कि सरकार की इस सिफारिश से दवा घाेटाले के दोषियों पर क्या कार्रवाई होती है। सवाल यह भी है कि राज्य सरकार खुद ही क्यों दोषियों पर कार्रवाई नहीं कर रही। उत्तराखंड में दवा घोटाले का खुलासा रुड़़की स्थित स्वास्थ्य विभाग के ड्रग वेयर हाउस से हुआ था, जहां लगभग सवा करोड़ की दवा नवजात और उनकी माताओं तक बंटने के इंतजार में एक्सपायर हो गई थी। रुड़की ड्रग वेयर हाउस के 2008 से 2010 के इस मामले को अफसरों ने दबा दिया था। इस मामले को हरिद्वार निवासी आरटीआई एक्टीविस्ट रमेश चंद्र शर्मा ने उठाया था। श्री शर्मा की मेहनत रंग लाई और लोकायुक्त ने इस मामले की जांच कराई तो खुलासा हुआ कि सवा करोड़ की दवा गर्भवती महिलाओं, जच्चा- बच्चा को बांटने की बजाय वेयर हाउस में रहने दी। जबकि दवा खरीदने में अफसरों ने ख़ास रुचि दिखाई थी, लेकिन दवा को पात्राें तक पहुंचाने में ध्यान नहीं दिया गया। मतलब साफ़ है कि जनता के पैसों का क्या हुआ होगा। लोकायुक्त ने इस मामले में एनआरएचएम में संयुक्त निदेशक (आरसीएच) सहित नौ अफसरों, कर्मचारियों को दोषी पाते हुए उनके खिलाफ कार्रवाई और सरकारी रकम रिकवर कराने की संस्तुति सरकार से की थी, लेकिन यह मामला सरकार के पास तीन साल से भी ज्यादा समय से फाइलों में ही दबा था। लोकायुक्त के इस फैसले के बाद आरटीआई एक्टीविस्ट शर्मा स्वास्थ्य विभाग से लगभग 14 करोड़ की दवा खरीद से लेकर वितरण तक की जानकारी सूचना के अधिकार के तहत मांगी थी। बाद में यह मामला उत्तराखंड सूचना आयोग पहुंचा,जहां सूचना अायुक्त के आदेश के बाद भी स्वास्थ्य विभाग के अफसर यह नहीं बता पाए कि लगभग सवा 11 करोड़ की दवा कहां और किनको बांटी गई। सूचना आयुक्त अनिल कुमार शर्मा ने वर्ष 2013 में राज्य सरकार से दवा घोटाले की जांच सीबीआई से कराने की सिफारिश की थी, लेकिन राज्य सरकार इस मामले में एक इंच भी आगे नहीं बढ़ पाई।2014 में लोकसभा चुनाव के दौरान एक बार फिर दवा घोटाले की जांच सीबीआई से कराने की सिफारिश किए जाने की बात सामने आई थी, लेकिन चुनावी शोर खत्म होने के बाद सरकार फिर इस पूरे मामले को भूल गई। अब एक बार फिर चुनावी दौर शुरू होने से पहले कैबिनेट ने इस मामले की सीबीआई से जांच कराने की सिफारिश की है।इस मामले में एक बात तो साफ हो गई कि सत्तारूढ़ दल दवा घोटाले का चुनावी फायदा उठाना चाहता है। अगर एेसा नहीं है तो लोकायुक्त और उनके बाद सूचना आयुक्त की सिफारिश को तीन साल तक नजर अंदाज किस वजह से किया गया, जबकि यह सरकारी धन के दुरुपयोग और गर्भवती महिलाओं, जच्चा-बच्चा के स्वास्थ्य से जुड़ा संवेदनशील मामला है। महिलाओं और बच्चों के कल्याण के लिए कई योजनाएं चलाने का ढिंढोरा पीटने वाली सरकार इस मामले का खुलासा करने, दोषियों को सजा देने में इतनी देर तक क्यों चुप्पी साधे रही। जबकि राज्य की दो प्रमुख संवैधानिक संस्थाओं ने इसमें कार्रवाई की सिफारिश की थी।यही नहीं लोकायुक्त की ओर से कराई गई जांच में लगभग सवा करोड़ की दवा एक्सपायर होने के मामले में दोषी पाई गईं महिला अफसर को सरकार ने बाद में प्रमोशन दे दिया था। बाद में सरकार के ही धन से राजधानी में हेल्थ सेंटर चलाने वाले एक एनजीओ ने इन महिला अफसर को नियुक्ति दे दी। सरकारी बजट से चलने वाले इन सेंटरों की कार्यशैली भी विवादों के घेरे में है। इनको लेकर आरटीआई के जरिये नये खुलासे हो रहे हैं।
क्या राज्य सरकार खुद नहीं कर सकती कार्रवाई
राज्य सरकार दवा घोटाले की जांच सीबीआई से कराने की संस्तुति केंद्र सरकार से कर रही है। इस मामले की जांच सीबीआई से करानी है या नहीं, यह फैसला केंद्र सरकार को करना है। सवाल उठता है कि राज्य सरकार अपने स्तर से इस मामले की जांच क्यों नहीं कराती, जबकि राज्य के लोकायुक्त ने इस पर फैसला सुनाते हुए दोषी चिहि्नत किए थे। लोकायुक्त ने भी सरकार के ही एक वरिष्ठ अधिकारी की जांच रिपाेर्ट पर सुनवाई करते हुए फैसला सुनाया था। राज्य सरकार खुद दवा घाेटाले के दोषियों पर कार्रवाई करे। भले ही बजट केंद्र सरकार से जारी हुआ था, लेकिन दवा नहीं पहुंचने और एक्सपायर होने से हक तो राज्य की गर्भवती महिलाओं, जच्चा बच्चा का छीना गया था। उनके साथ अन्याय ही नहीं हुआ था, बल्कि उनके स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ भी किया गया था।
क्या राज्य सरकार खुद नहीं कर सकती कार्रवाई
राज्य सरकार दवा घोटाले की जांच सीबीआई से कराने की संस्तुति केंद्र सरकार से कर रही है। इस मामले की जांच सीबीआई से करानी है या नहीं, यह फैसला केंद्र सरकार को करना है। सवाल उठता है कि राज्य सरकार अपने स्तर से इस मामले की जांच क्यों नहीं कराती, जबकि राज्य के लोकायुक्त ने इस पर फैसला सुनाते हुए दोषी चिहि्नत किए थे। लोकायुक्त ने भी सरकार के ही एक वरिष्ठ अधिकारी की जांच रिपाेर्ट पर सुनवाई करते हुए फैसला सुनाया था। राज्य सरकार खुद दवा घाेटाले के दोषियों पर कार्रवाई करे। भले ही बजट केंद्र सरकार से जारी हुआ था, लेकिन दवा नहीं पहुंचने और एक्सपायर होने से हक तो राज्य की गर्भवती महिलाओं, जच्चा बच्चा का छीना गया था। उनके साथ अन्याय ही नहीं हुआ था, बल्कि उनके स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ भी किया गया था।
Comments
Post a Comment