एक दुकान पर पिल्लों की बिक्री का
बोर्ड लगा था। एक बच्चे ने बोर्ड देखा और दुकानदार से पूछा कि आपके पास कितने
कितने दाम के पिल्ले हैं। उसने जवाब दिया कि यही कोई डेढ़ से दो हजार रुपये तक के
पिल्ले बिक्री के लिए उपलब्ध हैं। बच्चे ने अपनी जेब टटोली तो उसकी पास कुल मिलाकर
300 रुपये थे। उसने दुकानदार से कहा कि क्या मैं उन पिल्लों को देख सकता हूं।
दुकानदार ने कहा, हां क्यों नहीं।
दुकानदार उसको अपने साथ एक कमरे में
ले गया, जहां पांच पिल्ले एक गेंद से खेल रहे थे। इनमें से एक पिल्ला सही तरह चल
नहीं पा रहा था। उसके पैरों में कुछ लचक साफ देखी जा सकती थी। उसने दुकानदार से
पूछा कि इसको क्या हो गया है। उसने जवाब दिया कि इसके पैर में दिक्कत है और यह
तेजी से नहीं चल सकता। डॉक्टर का कहना है कि यह ऐसा ही रहेगा।
इस पर बच्चे ने कहा कि यही वो
पिल्ला है, जिसे मैं खरीदना चाहता हूं। दुकान
के मालिक ने कहा, क्या तुम उस पिल्ले को नहीं खरीदना चाहते, जिसे देखने
के लिए यहां आए हो। यदि तुम उसको खरीदना चाहते हो तो मैं तुम्हें दे दूंगा।
बच्चे
का कहना था कि वह उस पिल्ले को खरीदना चाहता है, जो सही तरह से नहीं चल पा रहा है।
मेरे लिए वह आपके पास मौजूद अन्य सभी पिल्लों से बेहतर है। अभी मैं आपको 300 रुपये
ही दे सकूंगा, बाकि की रकम किश्तों में चुका दूंगा।
दुकानदार
कुछ समझ नहीं पा रहा था कि बच्चे ने दौड़ नहीं सकने वाले पिल्ले को ही क्यों चुना।
उसने पूछा कि यह पिल्ला आपके साथ दौड़ते हुए नहीं खेल पाएगा। इसको खरीदकर आपको कोई
फायदा नहीं मिलने वाला। इस पर बच्चे ने दुकानदार को बताया कि एक दुर्घटना में वह
गंभीर रूप से घायल होकर अपना एक पैर खो चुका है। वह मैटल के बनाए आर्टिफिशियल पैर
के सहारे चल रहा है।
उसने कहा कि मैं भी इस पिल्ले की तरह नहीं दौड़ पाता हूं। मेरे
से ज्यादा कौन इस छोटे से पिल्ले के कष्ट को समझेगा। यह मेरे साथ सही तरह से खेल
सकेगा। दुकानदार भावुक हो गया। उसने बच्चे को आसान किश्तों पर वह पिल्ला सौंप
दिया।
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