धन के देवता कुबेर को अपने धन और समृद्धि पर अभिमान हो गया। उन्होंने अपने धन और समृद्धि का बखान करने के लिए सभी देवताओं को दावत पर आमंत्रित करने का मन बनाया। कुबेर ने सोचा कि सभी देवताओं पर उनका अच्छा प्रभाव जमेगा। सभी को लगेगा कि कुबेर जैसा कोई नहीं है।
उन्होंने कैलाश पर्वत पहुंचकर भगवान शिव को आमंत्रित किया। भगवान शिव कुबेर के संरक्षक है। उन्होंने ही कुबेर को उनकी भक्ति से प्रसन्न होकर वरदान दिया था कि उनकी संपत्ति कभी कम नहीं होगी, भले ही कितना ही खर्च करते रहें। भगवान शिव समझ गए कि कुबेर अभिमानी हो गए हैं।
भगवान शिव ने कुबेर से कहा कि वह दावत में नहीं आ सकते। वह अपने पुत्र श्रीगणेश को भेज देंगे। कुबेर निराश होकर वापस लौट गए। कुबेर सोचने लगे कि अगर भगवान शिव मेरे महल में आते तो मेरी प्रतिष्ठा बढ़ जाती। अगर भगवान शिव के परिवार से कोई भी दावत में नहीं आएंगे तो मेरा दावत करने का उद्देश्य ही सफल नहीं होगा।
कुबेर ने भव्य आयोजन किया था। सभी देवताओंं को दावत से पहले विशाल सभागार में सम्मान के साथ बैठाया गया। कुबेर ने अपनी संपत्ति और धन को दिखाने का कोई अवसर नहीं छोड़ा। मुख्य अतिथि श्री गणेश सबसे बाद में पहुंचे। कुबेर ने उनका स्वागत किया।
श्री गणेश ने कुबेर से पूछा, भोजन कहां है। कुछ ही देर में उनके समक्ष भोजन परोसा गया। श्री गणेश ने सारा भोजन तुरंत खा लिया। उन्होंने अधिक भोजन की मांग की। देखते ही देखते उन्होंने दावत के लिए तैयार सारा भोजन ग्रहण कर लिया। इसके बाद भी श्री गणेश ने और भोजन की मांग की। उन्होंने कहा, कुबेर मेरी भूख शांत नहीं हो रही है। कृपया और भोजन परोसो। कुबेर ने अपने सभी सेवकों को भोजन बनाने में लगा दिया, लेकिन श्री गणेश की भूख शांत नहीं हो रही थी।
श्री गणेश कह रहे थे, मुझे और भोजन दो। वह स्वयं ही रसोईघर में पहुंच गए और वहां रखा सारा राशन खा गए। यह देखकर कुबेर के होश उड़ गए। उनके पास अन्य मेहमानों की दावत के लिए राशन नहीं बचा था। श्री गणेश को अभी भी भूख लग रही थी।
श्री गणेश ने कुबेर ने कहा, तुम्हारे यहां भोजन नहीं है। मैं अपने घर जा रहा हूं। कुबेर ने उनको कुछ देर रुकने को कहा कि मैं अभी और भोजन का प्रबंध कर देता हूं, लेकिन श्री गणेश तो कुछ सुनने को तैयार नहीं थे। वह अपने घर कैलाश पर्वत की ओर चले गए।
उनके पीछे-पीछे कुबेर भी अपने वाहन से कैलाश पर्वत पहुंच गए। कैलाश पर्वत पर श्री गणेश ने भगवान शिव से शिकायत की कि कुबेर की दावत में भोजन की कमी थी। वह भूखे रह गए। इस पर शिव भगवान ने कहा कि जाओ अपनी माता से कुछ खाने के लिए मांगो। मुझे यकीन है कि कुबेर ने दावत में बेहतर इंतजाम किए होंगे।
श्री शिव के दरबार में पेश होते हुए कुबेर ने कहा, भगवान मैंने दावत में अपनी ओर से सभी बेहतर इंतजाम किए थे। श्री गणेश कुछ देर रुक जाते तो उनके लिए और भोजन का प्रबंध कर देता। कुबेर की बात सुनकर भगवान शिव मुस्कराने लगे। भगवान शिव को मुस्कराते देखकर कुबेर को लगा कि भगवान नाराज नहीं हैं। राहत पाकर कुबेर ने भगवान शिव के चरण पकड़ लिए। कुबेर ने कहा, भगवान मुझे माफ कर दो। मैं अब कभी अपने धन और संपदा को लेकर अभिमान नहीं करुंगा।
उन्होंने कैलाश पर्वत पहुंचकर भगवान शिव को आमंत्रित किया। भगवान शिव कुबेर के संरक्षक है। उन्होंने ही कुबेर को उनकी भक्ति से प्रसन्न होकर वरदान दिया था कि उनकी संपत्ति कभी कम नहीं होगी, भले ही कितना ही खर्च करते रहें। भगवान शिव समझ गए कि कुबेर अभिमानी हो गए हैं।
भगवान शिव ने कुबेर से कहा कि वह दावत में नहीं आ सकते। वह अपने पुत्र श्रीगणेश को भेज देंगे। कुबेर निराश होकर वापस लौट गए। कुबेर सोचने लगे कि अगर भगवान शिव मेरे महल में आते तो मेरी प्रतिष्ठा बढ़ जाती। अगर भगवान शिव के परिवार से कोई भी दावत में नहीं आएंगे तो मेरा दावत करने का उद्देश्य ही सफल नहीं होगा।
कुबेर ने भव्य आयोजन किया था। सभी देवताओंं को दावत से पहले विशाल सभागार में सम्मान के साथ बैठाया गया। कुबेर ने अपनी संपत्ति और धन को दिखाने का कोई अवसर नहीं छोड़ा। मुख्य अतिथि श्री गणेश सबसे बाद में पहुंचे। कुबेर ने उनका स्वागत किया।
श्री गणेश ने कुबेर से पूछा, भोजन कहां है। कुछ ही देर में उनके समक्ष भोजन परोसा गया। श्री गणेश ने सारा भोजन तुरंत खा लिया। उन्होंने अधिक भोजन की मांग की। देखते ही देखते उन्होंने दावत के लिए तैयार सारा भोजन ग्रहण कर लिया। इसके बाद भी श्री गणेश ने और भोजन की मांग की। उन्होंने कहा, कुबेर मेरी भूख शांत नहीं हो रही है। कृपया और भोजन परोसो। कुबेर ने अपने सभी सेवकों को भोजन बनाने में लगा दिया, लेकिन श्री गणेश की भूख शांत नहीं हो रही थी।
श्री गणेश कह रहे थे, मुझे और भोजन दो। वह स्वयं ही रसोईघर में पहुंच गए और वहां रखा सारा राशन खा गए। यह देखकर कुबेर के होश उड़ गए। उनके पास अन्य मेहमानों की दावत के लिए राशन नहीं बचा था। श्री गणेश को अभी भी भूख लग रही थी।
श्री गणेश ने कुबेर ने कहा, तुम्हारे यहां भोजन नहीं है। मैं अपने घर जा रहा हूं। कुबेर ने उनको कुछ देर रुकने को कहा कि मैं अभी और भोजन का प्रबंध कर देता हूं, लेकिन श्री गणेश तो कुछ सुनने को तैयार नहीं थे। वह अपने घर कैलाश पर्वत की ओर चले गए।
उनके पीछे-पीछे कुबेर भी अपने वाहन से कैलाश पर्वत पहुंच गए। कैलाश पर्वत पर श्री गणेश ने भगवान शिव से शिकायत की कि कुबेर की दावत में भोजन की कमी थी। वह भूखे रह गए। इस पर शिव भगवान ने कहा कि जाओ अपनी माता से कुछ खाने के लिए मांगो। मुझे यकीन है कि कुबेर ने दावत में बेहतर इंतजाम किए होंगे।
श्री शिव के दरबार में पेश होते हुए कुबेर ने कहा, भगवान मैंने दावत में अपनी ओर से सभी बेहतर इंतजाम किए थे। श्री गणेश कुछ देर रुक जाते तो उनके लिए और भोजन का प्रबंध कर देता। कुबेर की बात सुनकर भगवान शिव मुस्कराने लगे। भगवान शिव को मुस्कराते देखकर कुबेर को लगा कि भगवान नाराज नहीं हैं। राहत पाकर कुबेर ने भगवान शिव के चरण पकड़ लिए। कुबेर ने कहा, भगवान मुझे माफ कर दो। मैं अब कभी अपने धन और संपदा को लेकर अभिमान नहीं करुंगा।
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