कभी कभी जिंदगी में ऐसे सवालों से सामना होता, जिनका जवाब तलाशने में नींद उड़ जाती है। ये सवाल सपने में भी कचोटते हैं औऱ अवसाद में ले जाने को तैयार रहते हैं। साहस तो दिखाना ही होगा। दूसरे के सवालों पर सलाह देना बहुत आसान है, लेकिन जब जवाब अपने और परिवार की परवरिश को दांव पर लगाने वाला हो, तो अच्छे खासों की ताकत जवाब दे देती है।
व्यक्ति दाेराहे पर खड़ा होता है। एक तरफ परिवार और बच्चों की जिम्मेदारी दिखाई पड़ती है और दूसरी ओर वर्षों ईमानदारी, निष्ठा और मेहनत के बलबूते बचाए रखा स्वाभिमान। किस राह पर जाए, बच्चों की सही परवरिश की परवाह न करे या अपने स्वाभिमान को जेब में रखकर घूमता रहे।
ये सवाल उस संवेदनशील व्यक्ति के सामने बड़ी चुनौती बन जाता है, जब वह सार्वजनिक तौर पर जलालत के दौर से गुजर चुका हो। एेसा किसी के साथ भी हो सकता है, लेकिन मेरे पास इस सवाल का सपाट जवाब देना मुश्किल है। घुमा फिराकर जवाब देना होगा तो यही कहूंगा कि अच्छे विकल्प की तलाश जारी रखो। विकल्प मिल जाएगा तो किसी सवाल का जवाब नहीं देना होगा। पहले जैसी मेहनत और लगन से नई शुरुआत होगी तो सब कुछ पहले से बेहतर ही होगा। अगर कर्म पर विश्वास करते हो तो कोई भी दिक्कत ज्यादा दिन नहीं रहती।
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