Save River , Save Environment

अवैध खनन यानी ​राष्ट्रीय संपदा पर डकैती 


माफिया के सामने बोने हैं सरकार और उसका सिस्टम


माफिया दिनरात नदियों का सीना छलनी कर रहा है। इसे लूट नहीं कहिये यह सीधे सीधे नदियों में बिखरी पड़ी राष्ट्रीय संपदा पर डकैती है। राष्ट्रीय नदी को लेकर राजनीति की जा रही है। इसे स्वच्छ बनाने और इसकी सुरक्षा के ढोंग परसरकारों ने अरबों का बजट किनारे लगा दिया और हालात आपके सामने हैं। एक बड़ा मुद्दा गंगा के साथ अन्य नदियों को खनन माफिया से बचाने का भी है। माफिया सीधे-सीधे राज्यों को चुनौती दे रहा है। यह बात मैं बिल्कुल निडर होकर बिना शक के कह सकता हूं कि राज्य सरकार इन माफिया के सामने नतमस्तक होकर काम कर रही हैं। चाहे सरकार किसी भी दल की हो। प्रशासन वहीं करता है जो सरकार के नुमाइंदे और सत्तारूढ़ दल के नेता चाहते हैं। अगर ऐसा नहीं तो फिर क्या वजह है कि माफिया नदियों पर हावी हो रहा  है। उत्तराखंड  में आप कहेंगे कि एंटी माइनिंग विजिलेंस बड़ी कार्रवाई कर रहा है। बेशक इसमें कोई शक नहीं है ,लेकिन इसके बाद भी खनन में लिप्त लोगों का दुस्साहस कम नहीं होता जबकि हर छापे में करोड़ों का जुर्माना लगता है। माफिया पर इस जुर्माने का कोई फर्क नहीं पड़ता,क्योंकि इससे ज्यादा तो वह कुछ दिन में कमा लेता है। रही बात इज्जत की, उसकी उसे कोई चिंता नहीं है।
​ आज के जमाने में​ वो पैसे 
​से संबंध बनाना और झूठा सम्मान पाना जानता है। हरिद्वार इस समय खनन माफिया का सबसे बड़ा ठिकाना बना है। 

​क्या नेताओं और अफसरों को यह दिखाई नहीं दे रहा है। अगर सरकार चाहे तो एक दिन भी अवैध खनन नहीं हो सकता। माफिया और उसके लोग एक ट्रक तो क्या एक बुग्गी बजरी भरकर नदियों से नहीं ले जा सकते। लेकिन नदियों को लुटवाकर अपनी जेबे भरने वालों की यहां कोई कमी नहीं है। जिन लोगों पर सुरक्षा की जिम्मेदारी है, वे ही राष्ट्र की संपदा को लुटवा रहे हैं और नदियों पर दिनरात डकैती जैसा नजारा दिख रहा है। जाएगा। 

इसी सवाल का साक्ष्यों के साथ जवाब देने के लिए कार्रवाई करने वाले एक एसएसपी का तबादला कर दिया गया था। बरेली और यूपी के कई शहरों में छापे की कार्रवाई को रुकवा दिया गया था। अब जान लो कि माफिया का साथ देने वाले किस हद तक गिर चुके हैं। 

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