एक वर्ष पहले तक मैं खुद को कोसने और फिर दिनरात की भागदौड़ में व्यस्त पा रहा था। मैं सोच रहा था कि इसके आगे जिंदगी नहीं है और जिस उम्र से होकर मैं गुजर रहा हूं, वहां जोखिम उठाने की सभी संभावनाएं लगभग समाप्त हो जाती हैं।
यही जीवन है और वो सब ढोते जाओ, जो भी जरूरी और गैरजरूरी तुम पर लाद दिया जाता है। मै जानता था कि यहां जोखिम उठाने का मतलब खुद और परिवार की जिम्मेदारियों को मझधार में डालना। बात सही भी थी, घर-परिवार और दोस्तों से मशविरा में भी ऐसा कुछ हासिल नहीं हो सका, जो मुझे समाधान की ओर ले जाए।
मैं ठीक उस विशालकाय हाथी जैसी स्थिति में हो गया था, जिसका एक पैर छोटी सी रस्सी से बंधा था और जिसने समझ लिया था कि वो बंधनमुक्त नहीं हो सकता। उसने अपने मन और मस्तिष्क में यह बात अच्छी तरह चस्पा कर ली थी कि बचपन से लेकर आज तक इस खूंटे से आजाद नहीं हो सका तो अब इस उम्र में इस रस्सी को तोड़कर जाने का जोखिम क्यों उठाऊं।
वह अपनी जगह सही था और मेरे जैसे लोग अपनी जगह। सबके अपने -अपने तर्क हैं। उस हाथी से बात की जाए तो वो स्वयं को पुख्ता साबित करने के लिए तमाम तर्क गढ़ेगा और मुझे कहा जाए तो मैं अपने पक्ष को मजबूत बनाऊंगा।
मैं उस समाज और परिवार का हिस्सा हूं, जहां नौकरी मिल जाने का मतलब होता है, परिवार और अपने समाज के प्रति जीवनभर की फर्ज अदायगी। हर माह तनख्वाह से परिवार की जिम्मेदारी निभाना और फिर माह के अंत तक कुछ बच गया तो ठीक, नहीं तो अगला वेतन तो आना ही है।
माहभर का खर्च ओवरफ्लो होने का मतलब अगली तनख्वाह में एडजस्टमेंट। यह सिलसिला माह दर माह चलता रहता है। इसलिए वेतन से घर चलने की गारंटी रहती है। सब कुछ ठीक ठाक चलता रहे तो फिर कुछ नया करने की बात पर क्यों सोचा जाए।
मैं यहां अपनी बात खत्म करता हूं और हाथी वाले किस्से पर आता हूं। हो सकता है कि कुछ लोगों के लिए यह किस्सा प्रेरणा वाला हो और कुछ के लिए फिजूल की बात। एक व्यक्ति रोजाना उस रास्ते से होकर गुजरता था, जहां एक विशालकाय हाथी का पैर एक छोटी सी रस्सी से बंधा दिखता था।
अगर हाथी चाहता तो उस रस्सी को एक झटके में तोड़ सकता था, लेकिन वो अपनी दुनिया में मस्त होकर उस पैर को आगे पीछे तो करता, लेकिन रस्सी को झटका नहीं दे रहा था। यह नजारा देख वो व्यक्ति यह सोचता रहा है कि क्या हाथी इस बंधन से मुक्त नहीं होना चाहता।
क्या वो नहीं जानता कि रस्सी को जरा सी कोशिश में तोड़कर हमेशा के लिए आजाद हो सकता है। क्या इस तरह रहने की इस हाथी को आदत हो गई है और वो इसी हालत में खुश रहना सीख गया है। क्या वो अपने महावत से डरता है। क्या उसके भीतर यह डर पैदा हो गया है कि वो यह रस्सी तोड़कर यहां मिले भोजन पानी के लायक भी नहीं रह पाएगा। क्या वो जीवन में दो समय के खाने पीने के अलावा और कुछ नहीं सोचता।
एक दिन वो व्यक्ति हाथी के महावत से यह सवाल पूछ लेता है कि एक छोटी सी रस्सी ने इतने बड़े असीमित ताकत वाले हाथी को काबू में कर रखा है। इसका राज क्या है। महावत से जो जवाब मिला, वो हमारे आसपास मौजूद तमाम लोगों पर लागू हो रहा है।
महावत ने बताया कि यह रस्सी बचपन से इसके पैर में बंधी है। इसके दिमाग में यह बात बैठ गई है कि वो इस दायरे से बाहर नहीं निकल सकता और यही कारण है कि इसने कभी प्रयास भी नहीं किया। इसलिए यह इसी खूंटे पर बंधा रहकर जिंदगी गुजार रहा है।
इस पूरे वाकये का यह मतलब यह कतई नहीं निकाला जाए कि नौकरी करना, ठीक किसी खूंटे पर बंधने जैसा है। नौकरी करने के दौरान ही बहुत सारे लोग, कुछ ऐसा करके भी दिखाते हैं, जो सबसे अलग हो। यह सब कहने का उद्देश्य सिर्फ इतना है कि अगर जीवन में कुछ नया करना चाहते हो, तो खूंटे की रस्सी को तोड़ने का जोखिम तो उठाना ही पड़ेगा।
लेकिन इससे पहले अपनी ताकत को पहचान लीजिए कि आप क्या कर सकते हैं। अगर वर्षों से करते आ रहे कोई काम तकलीफ देता है, तो उसमें नयापन लाने की कोशिश करें। चाहे नौकरी हो या पढ़ाई हो या फिर बिजनेस या फिर कोई और विधिक पेशा, सब जगह कुछ न कुछ नयापन होना जरूरी है।
परंपरागत तरीके से हो रहे काम से कुछ तो बाहर आना होगा। आज तमाम ऐसे अभिनव प्रयोग हमारे सामने आ रहे हैं, जो प्रेरित करते हैं। हम उनको जानकर बोल उठते हैं कि वो कर सकते हैं, हम क्यों नहीं। उम्मीद है कि आप करेंगे कुछ नया, जो किसी खूंटे की रस्सी के दायरे से बाहर आने जैसा ही होगा....।
यही जीवन है और वो सब ढोते जाओ, जो भी जरूरी और गैरजरूरी तुम पर लाद दिया जाता है। मै जानता था कि यहां जोखिम उठाने का मतलब खुद और परिवार की जिम्मेदारियों को मझधार में डालना। बात सही भी थी, घर-परिवार और दोस्तों से मशविरा में भी ऐसा कुछ हासिल नहीं हो सका, जो मुझे समाधान की ओर ले जाए।
मैं ठीक उस विशालकाय हाथी जैसी स्थिति में हो गया था, जिसका एक पैर छोटी सी रस्सी से बंधा था और जिसने समझ लिया था कि वो बंधनमुक्त नहीं हो सकता। उसने अपने मन और मस्तिष्क में यह बात अच्छी तरह चस्पा कर ली थी कि बचपन से लेकर आज तक इस खूंटे से आजाद नहीं हो सका तो अब इस उम्र में इस रस्सी को तोड़कर जाने का जोखिम क्यों उठाऊं।
वह अपनी जगह सही था और मेरे जैसे लोग अपनी जगह। सबके अपने -अपने तर्क हैं। उस हाथी से बात की जाए तो वो स्वयं को पुख्ता साबित करने के लिए तमाम तर्क गढ़ेगा और मुझे कहा जाए तो मैं अपने पक्ष को मजबूत बनाऊंगा।
मैं उस समाज और परिवार का हिस्सा हूं, जहां नौकरी मिल जाने का मतलब होता है, परिवार और अपने समाज के प्रति जीवनभर की फर्ज अदायगी। हर माह तनख्वाह से परिवार की जिम्मेदारी निभाना और फिर माह के अंत तक कुछ बच गया तो ठीक, नहीं तो अगला वेतन तो आना ही है।
माहभर का खर्च ओवरफ्लो होने का मतलब अगली तनख्वाह में एडजस्टमेंट। यह सिलसिला माह दर माह चलता रहता है। इसलिए वेतन से घर चलने की गारंटी रहती है। सब कुछ ठीक ठाक चलता रहे तो फिर कुछ नया करने की बात पर क्यों सोचा जाए।
मैं यहां अपनी बात खत्म करता हूं और हाथी वाले किस्से पर आता हूं। हो सकता है कि कुछ लोगों के लिए यह किस्सा प्रेरणा वाला हो और कुछ के लिए फिजूल की बात। एक व्यक्ति रोजाना उस रास्ते से होकर गुजरता था, जहां एक विशालकाय हाथी का पैर एक छोटी सी रस्सी से बंधा दिखता था।
अगर हाथी चाहता तो उस रस्सी को एक झटके में तोड़ सकता था, लेकिन वो अपनी दुनिया में मस्त होकर उस पैर को आगे पीछे तो करता, लेकिन रस्सी को झटका नहीं दे रहा था। यह नजारा देख वो व्यक्ति यह सोचता रहा है कि क्या हाथी इस बंधन से मुक्त नहीं होना चाहता।
क्या वो नहीं जानता कि रस्सी को जरा सी कोशिश में तोड़कर हमेशा के लिए आजाद हो सकता है। क्या इस तरह रहने की इस हाथी को आदत हो गई है और वो इसी हालत में खुश रहना सीख गया है। क्या वो अपने महावत से डरता है। क्या उसके भीतर यह डर पैदा हो गया है कि वो यह रस्सी तोड़कर यहां मिले भोजन पानी के लायक भी नहीं रह पाएगा। क्या वो जीवन में दो समय के खाने पीने के अलावा और कुछ नहीं सोचता।
एक दिन वो व्यक्ति हाथी के महावत से यह सवाल पूछ लेता है कि एक छोटी सी रस्सी ने इतने बड़े असीमित ताकत वाले हाथी को काबू में कर रखा है। इसका राज क्या है। महावत से जो जवाब मिला, वो हमारे आसपास मौजूद तमाम लोगों पर लागू हो रहा है।
महावत ने बताया कि यह रस्सी बचपन से इसके पैर में बंधी है। इसके दिमाग में यह बात बैठ गई है कि वो इस दायरे से बाहर नहीं निकल सकता और यही कारण है कि इसने कभी प्रयास भी नहीं किया। इसलिए यह इसी खूंटे पर बंधा रहकर जिंदगी गुजार रहा है।
इस पूरे वाकये का यह मतलब यह कतई नहीं निकाला जाए कि नौकरी करना, ठीक किसी खूंटे पर बंधने जैसा है। नौकरी करने के दौरान ही बहुत सारे लोग, कुछ ऐसा करके भी दिखाते हैं, जो सबसे अलग हो। यह सब कहने का उद्देश्य सिर्फ इतना है कि अगर जीवन में कुछ नया करना चाहते हो, तो खूंटे की रस्सी को तोड़ने का जोखिम तो उठाना ही पड़ेगा।
लेकिन इससे पहले अपनी ताकत को पहचान लीजिए कि आप क्या कर सकते हैं। अगर वर्षों से करते आ रहे कोई काम तकलीफ देता है, तो उसमें नयापन लाने की कोशिश करें। चाहे नौकरी हो या पढ़ाई हो या फिर बिजनेस या फिर कोई और विधिक पेशा, सब जगह कुछ न कुछ नयापन होना जरूरी है।
परंपरागत तरीके से हो रहे काम से कुछ तो बाहर आना होगा। आज तमाम ऐसे अभिनव प्रयोग हमारे सामने आ रहे हैं, जो प्रेरित करते हैं। हम उनको जानकर बोल उठते हैं कि वो कर सकते हैं, हम क्यों नहीं। उम्मीद है कि आप करेंगे कुछ नया, जो किसी खूंटे की रस्सी के दायरे से बाहर आने जैसा ही होगा....।
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