नेचुरल इंटेलीजेंस अब आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस पर निर्भर हो गया। पूरी दुनिया रोबोटिक्स की ओर दौड़ रही है। हमारे आसपास तमाम तरह के रोबोट दिख रहे हैं, जो एक क्लिक पर हमें दुनिया दिखा रहे हैं। पूरी दुनिया की जानकारी सेकेंडों में पेश कर रहे हैं ये रोबोट। ये अब उस पुराने लोहे की ढांचे तक ही सीमित नहीं रह गया है, जो लगभग तीस साल पहले हमने टीवी पर हर शनिवार आने वाले रोबोट सीरियल में देखा था। हमारा मोबाइल, कंप्यूटर, लैपटॉप, बाइक सभी कुछ तो रोबोट हैं। यह सब इंसानों की बस्ती में अपना रुतबा बनाने में जुटे हैं।
हमारे काम सीमित होते जा रहे हैं। अधिकतर समय रोबोटों के साथ बिताया जा रहा है। सऊदी अरब में इंसानों जैसी दिखने वाली रोबोट सोफिया को नागरिकता मिल गई। सऊदी अरब दुनिया का पहला ऐसा देश है, जिसने रोबोट को नागरिकता दी है। इस रोबोट ने संबोधित भी किया और सवालों के जवाब भी दिए। यह पहला कदम है और इमेजिन करें आने वाले 50 साल को, तब शायद एक शहर या राज्य या फिर किसी देश का बड़ा हिस्सा रोबोटों का होगा।
अलग-अलग काम करने वाले रोबोट बनाने की प्रक्रिया का उद्देश्य किसी भी कार्य में एरर की गुंजाइश नहीं होने देना और कार्यबोझ कम करने की दिशा में प्रयास बताया जा रहा है। चाहे सिक्योरिटी की बात हो या फिर मेडिकल साइंस की, रोबोट का दखल होने लगा है। यानि इन मशीनी मानवों पर पर इंसानों का विश्वास बढ़ रहा है। इनमें इंसानी इंटेलीजेंस प्रत्यारोपित किया जा रहा है। ये हमारी तरह व्यवहार कर रहे हैं और सवालों के जवाब दे रहे हैं।
क्या स्मार्ट वर्क का मतलब खुद का इंटेलीजेंस मशीनों में शिफ्ट करके उनसे काम कराना है। क्या हम इन मशीनों से काम लेते हुए इनके आदी तो नहीं हो रहे हैं। अगर हम फोन और अन्य डिवाइस की बात करें तो यह कहने में कोई गुरेज नहीं है कि आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस अब नेचुरल पर हावी होकर ज्यादा स्मार्ट हो गया है।
अब यहां तक कहा जा रहा है कि रोबोट बनाने के इस दौर में रोबोट बनने की प्रक्रिया से कैसे बचा जाए, इसके तरीके तलाशने होंगे। यह सवाल चुनौती बना है। क्या वास्तव में हम अपने बनाए रोबोटों से घिर रहे हैं। क्या हम इन पर पूरी तरह निर्भर हो गए हैं। क्या इनकी वजह से सुकून गायब होने लगा है। क्या हमारी दिनरात की भागदौड़ इनकी वजह से और ज्यादा बढ़ रही है।
कई बार लोगों को अपने स्मार्ट फोन से दूर भागते देखा है। कुछ लोग तो फोन उठाने से घबराने लगे हैं। यहां स्मार्ट फोन की बात इसलिए कर रहा हूं, क्योंकि इसी रोबोट से सबसे ज्यादा वास्ता पड़ता है। यह हर समय साथ रहता है। यस बॉडी पार्ट की तरह विहैव करने लगा है। अक्सर सवाल उठता है कि ये हमारे रोबोट हैं या हम इनके रोबोट। मोबाइल फोन और इसके जरिये दुनिया से जुड़ने की प्रतिस्पर्धा को देखते हुए तो यहीं कहा जा सकता है।
हमारे काम सीमित होते जा रहे हैं। अधिकतर समय रोबोटों के साथ बिताया जा रहा है। सऊदी अरब में इंसानों जैसी दिखने वाली रोबोट सोफिया को नागरिकता मिल गई। सऊदी अरब दुनिया का पहला ऐसा देश है, जिसने रोबोट को नागरिकता दी है। इस रोबोट ने संबोधित भी किया और सवालों के जवाब भी दिए। यह पहला कदम है और इमेजिन करें आने वाले 50 साल को, तब शायद एक शहर या राज्य या फिर किसी देश का बड़ा हिस्सा रोबोटों का होगा।
अलग-अलग काम करने वाले रोबोट बनाने की प्रक्रिया का उद्देश्य किसी भी कार्य में एरर की गुंजाइश नहीं होने देना और कार्यबोझ कम करने की दिशा में प्रयास बताया जा रहा है। चाहे सिक्योरिटी की बात हो या फिर मेडिकल साइंस की, रोबोट का दखल होने लगा है। यानि इन मशीनी मानवों पर पर इंसानों का विश्वास बढ़ रहा है। इनमें इंसानी इंटेलीजेंस प्रत्यारोपित किया जा रहा है। ये हमारी तरह व्यवहार कर रहे हैं और सवालों के जवाब दे रहे हैं।
क्या स्मार्ट वर्क का मतलब खुद का इंटेलीजेंस मशीनों में शिफ्ट करके उनसे काम कराना है। क्या हम इन मशीनों से काम लेते हुए इनके आदी तो नहीं हो रहे हैं। अगर हम फोन और अन्य डिवाइस की बात करें तो यह कहने में कोई गुरेज नहीं है कि आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस अब नेचुरल पर हावी होकर ज्यादा स्मार्ट हो गया है।
अब यहां तक कहा जा रहा है कि रोबोट बनाने के इस दौर में रोबोट बनने की प्रक्रिया से कैसे बचा जाए, इसके तरीके तलाशने होंगे। यह सवाल चुनौती बना है। क्या वास्तव में हम अपने बनाए रोबोटों से घिर रहे हैं। क्या हम इन पर पूरी तरह निर्भर हो गए हैं। क्या इनकी वजह से सुकून गायब होने लगा है। क्या हमारी दिनरात की भागदौड़ इनकी वजह से और ज्यादा बढ़ रही है।
कई बार लोगों को अपने स्मार्ट फोन से दूर भागते देखा है। कुछ लोग तो फोन उठाने से घबराने लगे हैं। यहां स्मार्ट फोन की बात इसलिए कर रहा हूं, क्योंकि इसी रोबोट से सबसे ज्यादा वास्ता पड़ता है। यह हर समय साथ रहता है। यस बॉडी पार्ट की तरह विहैव करने लगा है। अक्सर सवाल उठता है कि ये हमारे रोबोट हैं या हम इनके रोबोट। मोबाइल फोन और इसके जरिये दुनिया से जुड़ने की प्रतिस्पर्धा को देखते हुए तो यहीं कहा जा सकता है।
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