डॉगी की चिट्ठी

सभी इंसान बुरे नहीं होते

जमाना कितना भी क्यों नहीं बदल जाएसभी इंसान बुरे नहीं होते। कुछ इंसान हैं जो हमारे साथ पशुता वाला नहीं बल्कि विशुद्ध रूप से मानवता वाला व्यवहार करते हैं। हम बोल नहीं पातेउनको बता नहीं पातेहमारे पास इंसानों से संवाद की ताकत नहीं है। हम अपनी तकलीफों और बातों को कुछ संकेतों के जरिये उन तक पहुंचाने की कोशिश करते हैं। 

कभी वो समझ पाते हैं और कभी नहीं । भला हो उनका जो हमारी पीड़ा को समझकर राहत पहुंचाते हैं। हम शुक्रगुजार हैं उन लोगों के जो हमारे सुख और दुख को लेकर संवेदनशील हैं। दोस्तों मैं तुम्हें यह चिट्ठी उस पशु चिकित्सालय से लिख रहा हूंजहां मैं उस वक्त लाया गया थाजब मुझमें जीने की आस लगभग खत्म हो गई थी। 

उस रात मैं देहरादून के मोहकमपुर फाटक के पास खड़ा था। फाटक बंद था। अब तो वहां फ्लाईओवर बन गया है। मेरे पैरों में बहुत दर्द हो रहा था और मैं अचानक रेलवे ट्रैक से कुछ ही दूरी पर बीच  सड़क पर गिर गया। ट्रेन जाने के बाद फाटक खुला और गाड़ियों ने रफ्तार पकड़ ली। कोई  मुझे नहीं देख पाया और थोड़ी ही देर में मेरे ऊपर से एक के बाद एक करके कई गाड़ियों के टायर गुजर गए। 

मैं बुरी तरह जख्मी हो गया। मेरे मुंह से खून का फौव्वारा फूट पड़ा था। मैं सांसें गिनने लगा। बहुत दर्द हो रहा था। शरीर से जान बाहर निकलने की तैयारी कर रही थीऐसे में, मैं तेजी से कराह भी नहीं पा रहा था। रोनेचीखनेचिल्लाने के लिए भी तो ताकत चाहिएजो मेरे शरीर से कब की जा चुकी थी। मैं उस समय समझ गया था कि वक्त तुम लोगों से दूर जाने का आ गया है। 

वो तो भला हो उन कुछ इंसानों काजिन्होंने खून से लथपथ मेरे लगभग निर्जीव हो चुके शरीर को एक कपड़े पर रख दिया और फिर उस कपड़े के सहारे उठाकर मुझे  सड़क किनारे रख दिया थाताकि मैं किसी सुरक्षित स्थान पर दम तोड़ सकूं और फिर किसी टायर के नीचे आने से बच जाऊं। मैंने पूरी रात सड़क किनारे तड़पते हुए गुजारी। फिर नई सुबह के साथ यह उम्मीद जगी कि अब तो कोई मुझे सहारा देने आएगा।

दोस्तोंआप लोग मुझे तड़पता देखने के बाद भी लाचार थे। उस समय तो मौत से यही शिकवा था कि मुंह में लेने के बाद भी वो मुझे निगल क्यों नहीं रही थी। मैं तो यही प्रार्थना कर रहा था कि प्राण शरीर से बाहर निकल जाएं। लाचारी और दर्द से मुक्ति मिल जाए। मैं भूखा और प्यासा पड़ा थाऊपर से शरीर खून से सना था। पूरा दिन बीत गया पर न तो मुझे मौत आई और न ही मेरी मदद के लिए राह चलता कोई राहत लेकर पहुंचा। 

मैं एक ऐसी उम्मीद के सहारे सड़क किनारे पड़ा कराह रहा थाजिसके पूरा होने को लेकर मुझे शक था। गाड़ियों की लाइटें जलती देखने से मालूम हो गया था कि दिन डूब गया। समझ गया कि अब तो रात होने वाली है। मौत अक्सर रात को ही आती हैइसलिए अब किसी मदद की नहीं बल्कि मौत का इंतजार करने लगा।

थोड़ी ही देर में एक वैन मेरे पास आकर रुकती है और देखता हूं कि दो लोग मेरी ओर बढ़ रहे हैं। समझते देर नहीं लगी कि अब राहत मिलने वाली है। मैंने इंसानों को ही सुना था कि जब जिंदगी बची हो तो मौत खूब सताने के बाद भी कुछ नहीं बिगाड़ पाती। लगा कि अब कुछ भला हो जाएगा।

कुछ ही देर में एंबुलेंस मुझे लेकर चिकित्सालय पहुंच गई। यहां कई दिन के इलाज और वक्त पर खाना-पानी,दवा मिलने की वजह से मेरी हालत में सुधार आ रहा है। मेरा कष्ट दूर हो रहा है और शरीर से बहे खून की रिकवरी हो रही है। 

यहां मेरी तरह लाए गए डॉगियों की पूरी गैंग हैजिनको कभी बांधकर नहीं रखा जाता। ये अपनी इच्छा से कहीं भी बैठ और घूम सकते हैं। यहां डॉगी और कैट सभी एक साथ रहते हैं और दिनभर खेलते हैं। और भी कई तरह के जरूरतमंद और घायल जानवरों को यहां लाया गया है। ये पूरी देखभाल के साथ इलाज पा रहे हैं। समय पर खाना मिलता है और पूरी मौज मस्ती के साथ रहते हैं। 

अगर मैं अस्पताल नहीं लाया जाता तो शायद इस चिट्ठी में अपनी व्यथा को बयां नहीं कर रहा होता। मुझे ठीक होने में अभी कुछ और समय लगेगा। कुछ दिन पहले मैं सुन रहा था कि रेस्क्यू और पूरे इलाज के बाद हमारे जैसे स्ट्रीट एनीमल्स को उसी जगह छोड़ दिया जाता हैजहां से उनको लाया जाता है। ये चाहते हैं कि स्ट्रीट एनीमल्स फिर से खुली हवा में अपनी पसंद की जिंदगी को जी सकें। 

दोस्तों तुम से बिछुड़े हुए लगभग दो महीने हो गए हैंइसलिए तुम सभी को याद कर रहा हूं। तुम लोगों को यह बताना चाहता हूं कि अधिकतर इंसान बुरे नहीं होते। मुझे अपनी गाड़ियों के नीचे कुचलने के बाद कराहता छोड़कर भागने वाले बुरे हो सकते हैं। मुझको सड़क किनारे सुरक्षित रखने वालेमेरे कष्ट को देखकर रेस्क्यू टीम को सूचना देने वाले और आखिर में चिकित्सालय वाले सभी लोग अच्छे इंसान हैं। 

पशुओं के साथ अच्छा व्यवहार करने वाले संवेदनशील लोगों की वजह से ही हम हैं। मैं कुछ वक्त के बाद फिर से डॉगी गैंग में शामिल होकर मोहमकमपुर की गलियों और सड़कों पर दौड़ लगाऊंगा। फिर से खूब मस्ती करेंगे। 

अस्पताल से तुम्हारा दोस्त 

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